Sunday, September 22, 2013

माँ दुर्गा का रूप तुही है, उसके जैसा ही बन बेटी

 
तू माथे का चन्दन बेटी
है तेरा अभिनन्दन बेटी

तुझसे हमको जीवन मिलता
घर भर का स्पंदन बेटी

सारे ग्रंथों में देखा है
सब करते हैं वंदन बेटी

है आशीष ज़माने भर का
कभी करे ना क्रंदन बेटी

अगर लगे वो पाप सरीखा
तोड़ दे तू हर बंधन बेटी

जहां भी जाये खुशबू फैले
जैसे वन हो नंदन बेटी

स्वाभिमान के लिए लड़े वो
इज्ज़त ही असली धन बेटी

बेटे तो खुदगर्ज़ मिले पर
करती है बस अरपन बेटी

माँ दुर्गा का रूप तुही है
उसके जैसा ही बन बेटी

11 comments:

  1. स्वाभिमान के लिए लड़े वो
    इज्ज़त ही असली धन बेटी

    बेटे तो खुदगर्ज़ मिले पर
    करती है बस अरपन बेटी,,,

    वाह !!! बहुत खूब,सुंदर रचना !आभार

    RECENT POST : हल निकलेगा

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - सोमवार - 23/09/2013 को
    जंगली बेल सी बढती है बेटियां , - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः22 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra

    ReplyDelete
  3. स्वाभिमान के लिए लड़े वो
    इज्ज़त ही असली धन बेटी
    बेहतरीन रचना !
    Latest post हे निराकार!
    latest post कानून और दंड

    ReplyDelete
  4. माँ दुर्गा का रूप तुही है
    उसके जैसा ही बन बेटी...

    आजकल बेटियों को इसी हौसले की ज़़रूरत है.. प्रेरक पंक्तियां ।

    ReplyDelete
  5. बिलकुल सही कहा, वक़्त की ज़रूरत है यह।

    ReplyDelete
  6. दमदार एवं सार्थक प्रस्तुति । सही बातें कही आपने ।

    मेरी नई रचना :- चलो अवध का धाम

    ReplyDelete
  7. सभी मित्रो का आभार . मैं भी आप तक पहुंचूंगा

    ReplyDelete
  8. पुत्री, बहन औ माँ तू बेटी
    जान ले तू नारी है बेटी।
    अबला नही सबला बन बेटी
    कत्रीना नही दुर्गा बन बेटी।

    ReplyDelete