''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
&COPY गिरीश पंकज संपादक सदभावना दर्पण. Powered by Blogger.

है मानव की यार पुस्तकें

>> Tuesday, April 22, 2014

विश्व पुस्तक दिवस पर मेरी और से विनम्र-भेंट

है मानव की यार पुस्तकें / करतीं कितना प्यार पुस्तकें
एक बार तो करो दोस्ती / हैं सबसे दिलदार पुस्तकें
भेदभाव से ऊपर उठ कर / करती हैं उपकार पुस्तकें
गलत-सलत से बचना वरना / कर देंगी बीमार पुस्तकें
पढ़ो ध्यान से सिखलाएँगी / सदा नेक व्यवहार पुस्तकें
बढ़ता जाता ज्ञान हमारा / पढ़ कर के दो-चार पुस्तकें
मूरख को भी कर देती हैं / घर बैठे हुशियार पुस्तकें
बम से भी बढ़ कर होती हैं / विस्फोटक हथियार पुस्तकें
हर पल मंत्र नया देती हैं / हमको बारम्बार पुस्तकें
उसका जीवन धन्य हो गया / है जिनका आधार पुस्तकें
जो चाहे उनको देती हैं / एक नया संसार पुस्तकें
आओ बैठी हैं स्वागत् में / कर के नवश्रृंगार पुस्तकें
जाने कितनों का करती हैं/ जीवन में उद्धार पुस्तकें
हर पल ही खुद को रखती हैं / सेवा में तैयार पुस्तकें
नाकारे लोगों को लगतीं / बेमतलब-बेकार पुस्तकें
वक्त पड़े तो दें अपनों को / बढ़ कर के उपहार पुस्तकें
हमने-सबने ही यह जाना / हैं जीवन का सार पुस्तकें
हमको बहुत सँवारा पंकज / है तेरा आभार पुस्तकें

2 टिप्पणियाँ:

Unknown April 26, 2014 at 2:35 AM  

आपकी इस उत्कृष्ट अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (27-04-2014) को ''मन से उभरे जज़्बात (चर्चा मंच-1595)'' पर भी होगी
--
आप ज़रूर इस ब्लॉग पे नज़र डालें
सादर

सुशील कुमार जोशी April 26, 2014 at 10:14 PM  

बहुत सुंदर !

सुनिए गिरीश पंकज को

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