''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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जिसको मुस्काना आता है

>> Friday, November 28, 2014

जिसको मुस्काना आता है
उससे दुःख भी घबराता है

बचना निंदारस से प्यारे
जहर एक दिन बन जाता है

सबको दिल से दुआ दीजिये
जीवन अमृत कहलाता है

जाने कब ये सांस थमेगी
मन क्यों समझ नहीं पाता है

जो अंधियारे से लड़ता है
वो इक दीपक कहलाता है

कौन बचा है इस दुनिया में
दुख-सुख से सबका नाता है

जिसने जब चलने की ठानी
पथ ही रस्ता दिखलाता है

नहीं मिला जो भूल उसे तू
'पंकज' मन को समझाता है

2 टिप्पणियाँ:

प्रतिभा सक्सेना November 28, 2014 at 9:28 AM  

बहुत बढ़िया!

कविता रावत November 29, 2014 at 12:13 AM  

जिसने जब चलने की ठानी
पथ ही रस्ता दिखलाता है
नहीं मिला जो भूल उसे तू
'पंकज' मन को समझाता है
..बहुत सही ...बहुत सुन्दर प्रस्तुति

सुनिए गिरीश पंकज को

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