मैं अपने दर्द का आखिर कहाँ इज़हार कर आऊँ
कोई तो एक हो सच्चा कि उसको प्यार कर आऊँ
कोई तो एक हो सच्चा कि उसको प्यार कर आऊँ
यहाँ तो हर कोई पीछे पड़ा है टूट जाऊं मैं
कोई ऐसा नहीं जिसको मैं सब कुछ हार कर आऊँ
कोई ऐसा नहीं जिसको मैं सब कुछ हार कर आऊँ
वो इक गुमनाम इंसां है मगर जैसे फरिश्ता है
जिए जो सबकी खातिर उसको जीवन वार कर आऊँ
जिए जो सबकी खातिर उसको जीवन वार कर आऊँ
मुझे कमजोर मत समझो बड़ी हिम्मत है मुझमे भी
कहो तो आग के दरिया को जा के पार कर आऊँ
कहो तो आग के दरिया को जा के पार कर आऊँ
बहुत ही बावरा है मन हजारो ही तमन्नाएँ
ज़रा समझाऊँ नादाँ को तमाचा मार कर आऊँ
ज़रा समझाऊँ नादाँ को तमाचा मार कर आऊँ
बहुत ख़ूबसूरत और सार्थक ग़ज़ल...
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