''सद्भावना दर्पण'

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इक किसान मर गया

>> Thursday, April 23, 2015


दिल्ली में आके कल मेरा भगवान मर गया
हाँ, ठीक ही समझा है इक किसान मर गया

सब लोग तमाशा खड़े बस देखते रहे ?
सबकी नज़र के सामने इंसान मर गया

मरते हुए इंसान की तस्वीर उतारी 
इस मीडिया का दोस्तो ईमान मर गया

जो है किसान वो हमारा अन्नदेव है 
क्योंकर हमारा ये महान ज्ञान मर गया

हर रोज मर रहे है इस देश में कृषक 
लगता है मुझे देश ये महान मर गया

गांव मर रहे, किसान-गाय भी मरे 
जो था मुझे प्यारा वो जहान मर गया

हम भूल गए हमको गाँवों ने बनाया 
कारन यही है 'पंकज' अहसान मर गया

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क्या से क्या होता जाता है मेरा हिंदुस्तान
जीने की सुविधाएं कम हैं मरना है आसान 

कहाँ गयी करुणा की बातें  कहाँ पुण्य औ दान 
अब तो मरते लोगों का ही दर्शक है इंसान

भाषण देने के आदी हैं अब सारे शैतान 
उनके सम्मुख मर जाता है 'धरती का भगवान'

अन्न उगने वाले मरते कैसा बना विधान
कर्जा लेकर डूब रहे हैं  'धरती के  दिनमान'

नायक यहाँ किनारे हो गए नालायक विद्वान 
लूटमार जिनके धंधे हैं वे है आज 'प्रधान'

कब तक मौन रहेगी जनता अब तो लें  पहचान 
कौन यहाँ पर खलनायक है कौन देश की शान  

1 टिप्पणियाँ:

KISHORE DIWASE April 24, 2015 at 12:36 AM  

कब तक मौन रहेगी जनता अब तो लें पहचान
कौन यहाँ पर खलनायक है कौन देश की शान

सुनिए गिरीश पंकज को

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