Thursday, April 23, 2015

ओ धरती के भगवान, हमारे प्यारे बड़े किसान


यवतमाळ जिले के किसानो के बीच रह कर लौटा हूँ . यह ''चेतना पदयात्रा '' है, जो पूरे देश में चलेगी, यवतमाळ जिले से यात्रा इसलिए शुरू हुयी कि यहाँ सर्वाधिक किसानो ने आत्महत्याएं की. एक लेखक-पत्रकार के नाते मैं यात्रा में शामिल हुआ ताकि उनकी समस्याओं को निकट से समझ सकूँ, किसानो की समस्याओं से इस देश के अनेक लोग सरोकार ही नहीं रखना चाहते यह दुःख की बात है. सरकारी तंत्र तो और अधिक निर्मम है. 'आनंद ही आनंद फाउंडेशन' और 'भारतीय शांति परिषद' की ओर से शुरू हुयी यह यात्रा युवा संन्यासी आचार्य विवेकजी के नेतृत्व में निकली. 15 अप्रेल को नागपुर से शुरू हुयी यात्रा पवनार आश्रम, सेवाग्राम होते हुए यवतमाळ जिले के कदम गाँव पहुँची। 16 से पद यात्रा शुरू हुयी और 19 अप्रेल को ख़त्म हुयी । अपना सौभाग्य मानता हूँ कि मेरा गीत ''ओ धरती के भगवान हमारे प्यारे बड़े किसान, अरे तू मत ले अपनी जान देख है लज्जित हिंदुस्तान'' संगीतबद्ध हो कर गाँव-गाँव में बजता रहा. मेरे मित्र भाई सतीश सक्सेना का गीत ''"यवतमाळ में पैदल जाकर जाने दर्द किसानों का'' भी सामान रूप से गूंजता रहा. 
जिले की पदयात्रा करते हुए रात को दस बजे जब हम लोग विवेकजी के साथ ग्राम ढेहनी पहुंचे और सभा ली तो अग्रिम पंक्ति में आ कर सात महिलाऐं बैठ गयी, उनके चेहरे बेहद उदास थे. देख कर ही लग रहा था कि वे बुरी तरह से टूट चुकी हैं. सभा के बाद जब महिलाओं के पास हम पहुंचे तब यह जान कर दंग रह गए कि ये सब विधवाएं है और मुआवजे का इंतज़ार कर रही हैं. इनका कहना है कि उनके किसान-पतियों ने आत्महत्याएं कर ली थी, किसी ने दो साल पहले, तो किसी ने चार साल पहले मगर इनमे से किसी को भी आज तक कोई मुआवजा नहीं मिला है. यहाँ का नालायक सरपंच मामले को दबा कर रखे हुए है, प्रशासन तक उसने यह बात पहुंचाई है कि इनके पतियों ने किसानी के कारणों से आत्महत्याएं नहीं की है
.यवतमाळ की यात्रा से लौटे तो दुखद जानकारी मिली कि दिल्ली में गजेन्द्र नमक किसान ने भरी सभा के बीच फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली . देश की राजधानी में एक बेबस किसान आत्महत्या कर लेता है सबके सामने और लोग उसे बचा नहीं पाते? ये कैसा समाज बना लिया है हमने? अब जब वो मर गया तो एक-दूसरे पर दोषारोपण किया जा रहा है? अभी हम लोग यवतमाळ के गाँवों की पदयात्रा करके लौटे. वहां भी अनेक किसान आत्महत्या करते रहे हैं, ''आनंद ही आनंद'' की और से निकली यात्रा का लक्ष्य यही था कि हम किसानो को समझाएं कि वे आत्महत्या न करे, अपनी समस्याओ से लोगों को अवगत कराएं. हमने गाँव में सभाएं लेकर उनसे भी आग्रह किया कि हम आपस में मदद करके  किसी दुखी व्यक्ति को मरने से बचा सकते हैं. मगर दिल्ली में तो शर्मनाक हादसा हुआ. अनेक लोगो के बीच एक किसान मर गया और लोग उसे बचा न सके.मैं एक बार फिर दुखी मन से कहना चाहता हूँ कि,

ओ धरती के भगवान, हमारे प्यारे बड़े किसान।
तू मत ले अपनी जान, देख है लज्जित हिंदुस्तान।
तुमने अन्न उगाए, भूखे सब ने तृप्ति पाई
तेरे कारण प्रगति हुई है, पुष्ट हुयी तरुणाई
तुम सबसे पहले जगते हो, तब आये दिनमान।
धरती का श्रृंगार है तुमसे, खेतो में हरियाली,
तुम हो तो घर-घर में सजती, कितनी सुन्दर थाली।
तुमसे ही आबाद रहे हैं, खेत और खलिहान,
तेरा जो अपमान करे वो समझो है अपराधी।
तेरे श्रम को भूल गए हम, यही हमारी व्याधी।
संघर्षो में जीना होगा, तू है इक बलवान।
जिनको हमने सत्ता सौंपी, वे निकले हरजाई,
अन्न उगने वाले भूखे, शातिर करे कमाई।
नोंच रहे है जो धरती को, उनको ले पहचान।
कहाँ गया वो भारत मेरा, था गाँवों का देश.
शहरों ने मारा इन सबको, ये धरती का क्लेश।
गांंव बचे तो देश बचेगा, होगा तब कल्याण।
मिलजुल कर सहकार करो अब अपना बैंक बनाओ
दो-दो पैसे जोड़ो और तुम सबको राह दिखाओ
बनिए, सूदखोर है समझो , धरती के शैतान। .
तुम हो भोले-भाले तुमको कितना ठग लेते है
पैसो की बस चमक दिखा कर लूट ये सब लेते है
पैर फैलाना देख के चादर सुखी रहे इंसान।
तुमसे ही ये गाँव मनोहर, तेरी प्यारी गैया।
इनकी भी रक्षा करनी है, बन कर किशन कन्हैया।
गाँव और गौ माता के संग, तुम पृथ्वी की शान.
जो हैं तेरे बैरी उनसे, उठो और टकराओ,
अंधियारी बस्ती में मिलकर , दीपक एक जलाओ.
एक रहें तो क्या कर लेंगे, आंधी और तूूफान।
 ''आनंद ही आनंद फाउंडेशन'' के बैंक खाते की जानकारी मुझे मिल गयी है. , मै यहाँ दे रहा हूँ. विधवाओ की मदद के लिए इसमें रकम जमा कर सकते हैं. ANANDA HI ANANDA FOUNDATION , bank account no. 20550110007372 , uco bank mid corporate branch,Nagpur , ifsc code - UCBA 0002055 - ये विश्वसनीय संस्था है. ये अपनी तरफ से भी कुछ मदद कर रही है. आप सबकी मदद से संस्था को और सम्बल मिलेगा और महिलओं की दुआएं भी मिलेंगी।

4 comments:

  1. गिरीश भाई ,ओ धरती के भगवान, हमारे प्यारे बड़े किसान।
    तू मत ले अपनी जान, देख है लज्जित हिंदुस्तान।
    अत्यंत विचारोत्तेजक काव्यसत्य। काश शवों पर वंशी बजाने वाला सियासी नीरो कुनबा निखालिस बेशर्मीयत तजकर किसानों के जीवन का सत्य स्वीकारे. य़कीनन उनकी कमजोरियों को दूर करने भी नयी प्रगतिशील राह दिखाना भी उतना भी जरूरी है। पर सबसे ज्यादा जरूरी समझता हूँ १. बाधक सामाजिक परम्पराओं के मकड़जाल से मुक्ति।२. किसानों के आर्थिक मसलों के हल हेतु उन्नयन प्रक्रियाओं का व्यवहारिक सरलीकरण.

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  2. आदरणीय गिरीश जी सबसे पहले तो आप और आदरणीय सक्सेना जी के उन शानदार गीतों को जो जन जन में किसानो की अलख जगाते हुए गली गली में बजे उसके लिए ढेर सारी बधाई ,,आपके गीत को कई बार गुनगुनाया ..दिल को छू लेने वाली रचना है आदरणीय ..आप लोग विवेक जी के नेत्रित्व में समाज के हित में आप जो काम कर रहे हैं वह अनुकरणीय भी है और श्रद्धा से सर भी झुकाने को बिबश करता है एक अरसे बाद आज ब्लॉग पर आना हुआ आपको पढने का मौका मिला ,,दिन की शुरुआत इतने शानदार गीत को और इतनी अच्छी चर्चा को पढ़कर हो इससे ज्यादा आनंद की बात क्या हो सकती है ,,ढेर सारी बधाई और शुभकामनाओं के साथ सादर

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  3. आपकी सराहना से जीवन की सार्थकता का अहसास हुआ . धन्यवाद आशुतोष जी

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