Thursday, May 28, 2015

हमको भी तो कुछ मिल जाते, खेल-खिलौने साहबजी



हमको भी तो कुछ मिल जाते, खेल-खिलौने साहबजी
हम निर्धन बच्चे भी देखें सपन-सलोने साहबजी

आपके बच्चे सोने-चांदी हम बेशक टूटे-फूटे
हैं निर्धन भी इस दुनिया के सुन्दर कोने साहबजी

किस्मत में सबकी ना होता उजियाला इस दुनिया में
अगर आप चमका देंगे तो हम हैं सोने साहबजी

बच्चो में भगवान बसे हैं यही सुना था लोगों से
पर गरीब बच्चो को जाना आज किन्होंने साहबजी

बचपन बीते मजदूरी में बस्ते हम से दूर रहे
अपनी किस्मत में बस जूठे बर्तन धोने साहबजी

ऊँचे लोगों को अक्सर नीचा दिखलाने की कोशिश
इसी खेल में लगे रहेंगे कद से बौने साहबजी

6 comments:

  1. साहब जी...काश!! समझ पाते तो विदेश न जाते पहले यह निपटाते!

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ब्रेकिंग न्यूज़ ... मोदी बीमार हैं - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. गरीबी झेलते बचपन के मन को प्रतिबिंबित करती उत्तम रचना आदरणीय सर जी सादर नमन ।

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