''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
&COPY गिरीश पंकज संपादक सदभावना दर्पण. Powered by Blogger.

>> Friday, June 26, 2015

जिसको कुछ भी याद नहीं 
 उसको फिर अवसाद नहीं 

अनबन का असली कारण

आपस में संवाद नहीं 

ज़िंदा है तो बोलेगा

मुर्दों में प्रतिवाद नहीं 

सहज-सरल वो शख्स रहे 

जिसमे कोई विषाद नहीं 

परनिंदा का रोग बुरा

वक्त करो बर्बाद नहीं 

जो है उसको साफ़ कहो

 जीवन छायावाद नहीं 

अब भी जुल्म-सितम ढेरो?

 क्या जन-गण आज़ाद नहीं

दिल्ली अब तक है बहरी 

 सुनती कुछ फ़रियाद नहीं

हम तो बात कहें अच्छी

 पर वैसा प्रतिसाद नहीं

हम सुनते सबकी बातें

हम कोई जल्लाद नहीं 

अब तो अवसरवाद चले

इससे बढ़ कर वाद नहीं 

सहज-सरल कविता सच्ची

शायद मेरे बाद नहीं 

चिंतन, मनन, पठन पंकज

 इससे बेहतर खाद नहीं

2 टिप्पणियाँ:

Satish Saxena June 27, 2015 at 4:42 AM  

सरल भाषा, स्पस्ष्ट सन्देश !

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ June 27, 2015 at 9:55 PM  

क्‍या बात

सुनिए गिरीश पंकज को

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