''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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प्रभुभक्तो के लिए एक भक्तिगीत

>> Saturday, July 4, 2015



मन क्यों डरता इस दुनिया से, जब ईश तुम्हारे अंदर है
यह ज्ञान सदा समझो सच्चा, संतोषी मन ही सुन्दर है .

भगवान हमें न दिख पाएं ,
पर वे रहते हैं साथ सदा.
हम लाख मुसीबत में आएं,
मन में रक्खे विश्वास सदा.
हम ध्यान करें करबद्ध रहें,
वह आएगा सुखसागर है...


मन क्यों डरता इस दुनिया से, जब ईश तुम्हारे अंदर है
यह ज्ञान सदा समझो सच्चा, संतोषी मन ही सुन्दर है .

परहित का ध्यान करें हरदम,
स्वारथ का भाव न आ जाए.
यह मानव जन्म मिला हमको,
बेकार न यह जाने पाए.
जिसने ऐसा जीवन जीया,
उसके वश में नटनागर है. ..


मन क्यों डरता इस दुनिया से, जब ईश तुम्हारे अंदर है
यह ज्ञान सदा समझो सच्चा, संतोषी मन ही सुन्दर है.

कोई छोटा या बड़ा नहीं,
हर काम यहां कल्याणी है.
गर कर्म करे अनपढ़ अपना,
समझो वह भी इक ज्ञानी है .
सबको आपने मन में रखना,
जैसे तू एक समंदर है.


मन क्यों डरता इस दुनिया से, जब ईश तुम्हारे अंदर है
यह ज्ञान सदा समझो सच्चा, संतोषी मन ही सुन्दर है .

4 टिप्पणियाँ:

कविता रावत July 4, 2015 at 7:17 AM  

मन क्यों डरता इस दुनिया से, जब ईश तुम्हारे अंदर है
यह ज्ञान सदा समझो सच्चा, संतोषी मन ही सुन्दर है.
..बहुत सुन्दर गीत

ब्लॉग बुलेटिन July 5, 2015 at 8:45 AM  

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, संडे स्पेशल भेल के साथ बुलेटिन फ्री , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

सुशील कुमार जोशी July 5, 2015 at 9:10 AM  

बहुत सुंदर ।

Satish Saxena July 16, 2015 at 6:20 AM  

बढ़िया !

सुनिए गिरीश पंकज को

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