Monday, August 3, 2015

मृत्यु नहीं, यह उत्सव है



मृत्यु नहीं, यह उत्सव है

दुनिया में जो आता है
इक दिन वापस जाता है .
कौन रहा चिरकाल यहाँ,
काल यही समझाता है.
अमर आत्मा हम सबकी,
प्रतिपल जैसे अभिनव है..

मृत्यु नहीं, यह उत्सव है


जिसने मृत्यु को जीता,
वो ही है इंसान बड़ा .
वही करेगा जीवन में,
सचमुच कर्म महान बड़ा.
मृत्यु और क्या? जीवन का,
फिर से नूतन उदभव है ..

मृत्यु नहीं, यह उत्सव है

जब तक जीवन, कर्म करें
कर्म को अपना धर्म करें.
मौत न हो गुमनामी की,
हम ऐसी इक मौत मरें.
शिव जैसा जीवन सुन्दर,
वरना वह जीवित शव है .

मृत्यु नहीं, यह उत्सव है

3 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, मेहनती सुप्रीम कोर्ट - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
  2. सब जानते हुए भी बहुत मुश्किल होता है माया मोह में फंसे हम प्राणियों के लिए मौत को स्वीकारने में
    बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  3. मंगलकामनाएं आपकी लेखनी को !

    ReplyDelete