Sunday, August 16, 2015

नवगीत / जैसे बदले रिंग टोन'

जैसे बदले रिंगटोन' वे
रिश्ते भी बदले हैं वैसे।

मोबाइल का सेट क़ीमती
खुद को बड़ा रईस दिखाते।
जो हैं बड़े लुटेरे वे सब
हल्केपन से बच ना पाते.
'कवरेज' से बाहर का जीवन,
धरती पर आएंगे कैसे ?

सारे इंकलाब दिखते है
फेसबुक और व्हाट्सऐप में,
वक्त पड़े तो घुस जाते है,
कहाँ न जाने किस 'गेप' में.
एक नहीं लाखों मिलते हैं
जीव 'नेट' में 'वैसे-ऐसे'.

सबके नेटवर्क हैं अपने,
अम्मा को अब देखे कौन.
बापू भी थक हार गए तो,
अब रहते हैं अक्सर मौंन।
भूल गए खिदमत बूढ़ों की,
लक्ष्य सभी का रुपये पैसे।।

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