''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
&COPY गिरीश पंकज संपादक सदभावना दर्पण. Powered by Blogger.

>> Monday, September 14, 2015

लाख मुसीबत आ जाए पर हिंदी का अवसान न होगा
अगर न होगी ये भाषा तो मेरा हिन्दुस्तान न होगा।।

हिंदी ने इस महादेश को जोड़ दिया है आपस मे.
बिन हिंदी अपने भारत का सचमुच में उत्थान न होगा।

माना हिंदी के घर में अब अंगरेजी का कब्जा है
लेकिन जब तक हैं हिंदी-सुत इस माँ का अपमान न होगा।

''गोरी चमड़ी'' का आकर्षण कुछ पल तक रहता ही है
पर हिंदी -माता के बिन तो हम सबका कल्यान न होगा।

सुप्त आत्मगौरव के कारण अंग्रेजी फल-फूल रही
जिस दिन जागेगा यह भारत अंग्रेज़ी का गान न होगा।

दुनिया के हर देश की अपनी भाषा होती है 'पंकज'
कब तक दिल्ली को आखिर इस सच्चाई का ज्ञान न होगा?

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कभी न बैठी थककर हिंदी
मिलती सबसे हँस कर हिंदी

सागर है ये, कभी रही ना
हर भाषा से कट कर हिंदी

कभी नहीं ये हिम्मत हारे
खड़ी हुयी है डट कर हिंदी

हिन्दीवाले ही खुद बैरी
कहती है यह फट कर हिंदी

लेकिन इधर उदास हुयी है
खेमो में अब बँट कर हिंदी

कब तक आखिर ले पाएगी
अँगरेज़ी से टक्कर हिंदी

सबकी पीड़ा को स्वर देती
करे काम यूं खट कर हिंदी

3 टिप्पणियाँ:

गिरिजा कुलश्रेष्ठ September 15, 2015 at 2:54 AM  

बहुत सुंदर । हिंन्दी अंग्रेजी से टक्कर ही नहीं लेगी बल्कि जीतेगी भी । बस हिंदी वाले हिन्दी के वफादार बने रहें

गिरिजा कुलश्रेष्ठ September 15, 2015 at 2:54 AM  

बहुत सुंदर । हिंन्दी अंग्रेजी से टक्कर ही नहीं लेगी बल्कि जीतेगी भी । बस हिंदी वाले हिन्दी के वफादार बने रहें

कविता रावत September 15, 2015 at 7:19 AM  

कब तक आखिर ले पाएगी
अँगरेज़ी से टक्कर हिंदी

सबकी पीड़ा को स्वर देती
करे काम यूं खट कर हिंदी

सुनिए गिरीश पंकज को

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