''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
&COPY गिरीश पंकज संपादक सदभावना दर्पण. Powered by Blogger.

>> Wednesday, November 11, 2015

सीहोर के बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यिक मित्र पंकज सुबीर का एक चर्चित ब्लॉग है-'सुबीर संवाद सेवा'. उसमे दीपावली के लिए चार तरही मिसरे दिए गए थे. मैंने चारों मिसरे पर कहने की कोशिश की.  ये चारों ग़ज़लें 'सुबीर संवाद सेवा' ब्लॉग में प्रकाशित हुई हैं.
(1 )
दीपक उदास है क्यों, इक बार मुस्करा दो
''ये जल उठेंगे तुम जो, इक बार मुस्करा दो''
खुशिया जो बांटते हैं धरती के हैं मसीहा
यह बात थोड़ी समझो, इक बार मुस्करा दो
हो जाएगा उजाला, बस एक बात मानो
हौले से लब ये खोलो, इक बार मुस्करा दो
दीपों से जगमगा दो, भागेगा ख़ुद अँधेरा
गर ये नसीब ना हो, इक बार मुस्करा दो
हँसने से आदमी का, बढ़ता है खून पंकज
अब और कुछ न सोचो, इक बार मुस्करा दो
(2 )
हो जाएगा सवेरा, इक बार मुस्करा दो
''मिट जाएगा अँधेरा , इक बार मुस्करा दो''
कब तक बंधे रहेंगे हम लोग दायरे में,
तोड़ो चलो ये घेरा, इक बार मुस्करा दो
जो कुछ कमाया तुमने, इक दिन न साथ होगा
वो मेरा है न तेरा, इक बार मुस्करा दो
सांसो की डोर तेरी, कब टूट जाए सोचो
उजड़ेगा ये बसेरा, इक बार मुस्करा दो
जो कल ग़रीब थे अब, दौलत से खेलते हैं
तक़दीर का है फेरा, इक बार मुस्करा दो
यूं ही न बैठो पंकज , मंज़िल है दूर थोड़ी
देखो, उसी ने टेरा, इक बार मुस्करा दो
(३)
दिल की कली खिलेगी, इक बार मुस्करा दो
फिर ज़िंदगी मिलेगी, इक बार मुस्करा दो
जब भी दिखा अँधेरा दीपक जला दिया है
फिर से शमा जलेगी, इक बार मुस्करा दो
हिम्मत न हारना तू , माना बिगड़ गयी है
यह बात फिर बनेगी, इक बार मुस्करा दो
ठहरा है वक़्त क्योंके हम भी ठहर गए हैं
ताज़ा हवा बहेगी, इक बार मुस्करा दो
लक्ष्मी भले हो रूठी, पर पूजना तू दिल से
आकर वही कहेगी, इक बार मुस्करा दो
पतझर से जो लड़ेगा, जीतेगा ज़िंदगी में
''मावस चमक उठेगी, इक बार मुस्करा दो''
(४)
दुनिया नयी बसाने, इक बार मुस्करा दो
बिगड़ी चलो बनाने, इक बार मुस्करा दो
रखता नहीं जहाँ में, सदियों तलक अँधेरा
''तारीकिया मिटाने, इक बार मुस्करा दो''
मनहूसियत अँधेरा, मुस्कान है उजाला
करना न अब बहाने, इक बार मुस्करा दो
भूलो पुरानी बातें, जो दिल दुखा रही हैं
छेड़ो नए तराने, इक बार मुस्करा दो
हमसे अँधेरे पंकज, अब हार मानते हैं
फिर शम्मा तुम जलाने, इक बार मुस्करा दो

1 टिप्पणियाँ:

yashoda Agrawal November 13, 2015 at 12:23 AM  

आदरणीय गिरीश भैय्या
सदर नमन
विदेशी रचनाकारोंं की कविताओं का हिन्दी अनुवाद के प्रकाशन की इच्छा मन में है
आप तो इसके माहिर हैं..
कृपया यदि हो तो ..
याचिका
यशोदा

सुनिए गिरीश पंकज को

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