करुणा होगी अंतर्मन में तो जीवन गुलजार मिलेगा
जिस दिन सच्चा प्यार जगेगा ये सुन्दर संसार मिलेगा ।
दहशत या आतंक कभी भी पाक नहीं हो सकते हैं
जैसा हम बोते हैं वैसा हमको भी हर बार मिलेगा
किस मज़हब के लिए यहां कुछ पागल खून बहाते हैं
छोडो तुम हथियार तुम्हे फिर वो 'सच्चा दरबार' मिलेगा
सिर्फ गोलियाँ चलने से आतंक नहीं फैला करता
बोली भी जहरीली हो तो खूनी कारोबार मिलेगा
जो दुनिया की चिंता करता वो है इक इंसान बड़ा
उसको ही इस दुनिया में बस हर मानव का प्यार मिलेगा।
जिसकी नज़रें जड़ में रहतीं, वो ही उठता है ऊपर
वही टिकेगा दुनिया में जिसको सच्चा आधार मिलेगा।
जिसका जो हक है मिल जाए, यही लक्ष्य रखना मन में
होगा तब सर्वोदय सबको जीने का अधिकार मिलेगा।
धन-दौलत औ ज्ञान को बांटो, इसमें सुख मिलता 'पंकज'
बिन चाहे बिन मांगे तब तो हर सुन्दर उपहार मिलेगा
कहीं इंसानियत का हो दफन अच्छा नहीं लगता
लहू पैरिस में बहता है, लहू मुंबई में गिरता है
ये है इंसानियत का ही पतन अच्छा नहीं लगता
करें मज़हब का ले के नाम गंदे काम दुनिया में
ये कैसे लोग हैं जिनको अमन अच्छा नहीं लगता
ये बंदूकें, ये तलवारें हमे कितना डराएंगी
गिने हम रोज़ कितने ही कफ़न अच्छा नहीं लगता
चलो मज़हब का सच्चा पाठ उनको हम सिखाएं अब
जिन्हें भी प्यार का सुंदर सपन अच्छा नहीं लगता
ये पागल खूँ बहा के कर रहे बदनाम मज़हब को
ये कैसा है नया गन्दा चलन अच्छा नहीं लगता
जिस दिन सच्चा प्यार जगेगा ये सुन्दर संसार मिलेगा ।
दहशत या आतंक कभी भी पाक नहीं हो सकते हैं
जैसा हम बोते हैं वैसा हमको भी हर बार मिलेगा
किस मज़हब के लिए यहां कुछ पागल खून बहाते हैं
छोडो तुम हथियार तुम्हे फिर वो 'सच्चा दरबार' मिलेगा
सिर्फ गोलियाँ चलने से आतंक नहीं फैला करता
बोली भी जहरीली हो तो खूनी कारोबार मिलेगा
जो दुनिया की चिंता करता वो है इक इंसान बड़ा
उसको ही इस दुनिया में बस हर मानव का प्यार मिलेगा।
जिसकी नज़रें जड़ में रहतीं, वो ही उठता है ऊपर
वही टिकेगा दुनिया में जिसको सच्चा आधार मिलेगा।
जिसका जो हक है मिल जाए, यही लक्ष्य रखना मन में
होगा तब सर्वोदय सबको जीने का अधिकार मिलेगा।
धन-दौलत औ ज्ञान को बांटो, इसमें सुख मिलता 'पंकज'
बिन चाहे बिन मांगे तब तो हर सुन्दर उपहार मिलेगा
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लहू से तर रहे कोई वतन अच्छा नहीं लगता कहीं इंसानियत का हो दफन अच्छा नहीं लगता
लहू पैरिस में बहता है, लहू मुंबई में गिरता है
ये है इंसानियत का ही पतन अच्छा नहीं लगता
करें मज़हब का ले के नाम गंदे काम दुनिया में
ये कैसे लोग हैं जिनको अमन अच्छा नहीं लगता
ये बंदूकें, ये तलवारें हमे कितना डराएंगी
गिने हम रोज़ कितने ही कफ़न अच्छा नहीं लगता
चलो मज़हब का सच्चा पाठ उनको हम सिखाएं अब
जिन्हें भी प्यार का सुंदर सपन अच्छा नहीं लगता
ये पागल खूँ बहा के कर रहे बदनाम मज़हब को
ये कैसा है नया गन्दा चलन अच्छा नहीं लगता
वाह बहुत सुंदर गजलें ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना , बधाई आपको !!
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