(1)
बुद्ध, संघ औ धर्म पर, जो शरणागत होय।
सत्संगति का फल मिले, वह पापों को धोय।।
(2)
पहले बस करुणा जगे, फिर अंतस का ज्ञान।
बिन इसके बनता नहीं, नेक कोई इनसान।।
(3)
नहीं मिटा है वैर से, कभी वैर-दुष्कर्म।
शाँति पाइए नेह से, यही सनातन धर्म।।
(4)
प्रेम-विजय हो क्रोध पर, कंजूसी पर दान।
झूठ हारता सत्य से, साधू से शैतान।।
(5)
सत्य, प्रेम अरु दान से, होता है मन शुद्ध।
है मनुजों में श्रेष्ठ वह, कहते हैं ये बुद्ध।।
(6)
बोलें तो पहले करें, उस पर तनिक विचार।
ऐसे मितभाषी बनें, धरती के श्रृंगार।।
(7)
रटने से क्या $फायदा, धर्म-कर्म की बात।
अगर आचरण में रचा, तो सच्ची सौगात।
(8)
बने धार्मिक व्यर्थ जो, करे न नेक प्रयास।
ज्यों सुंदर है फूल पर, उसमें नहीं सुवास।।
(9)
जैसे जंगल में कभी, चलता है गजराज।
चलो अकेले ना मिले, सज्जन अगर समाज।।
(10)
खरी-खरी बोले मगर, दिखलाए पथ नेक।
वह सबका हो प्रिय भले, दुश्मन रहे अनेक।।
वाह , हर दोहा बुद्ध ज्ञान देता हुआ । प्रेरक ।
ReplyDeleteआभार
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