चालाकी अब बड़ा चरित्तर प्यारेलाल
तेरा भी है कोई न उत्तर प्यारेलाल
कहाँ मौन रहना है कहाँ मुखर रहूँ
इसी कला में माहिर मित्तर प्यारेलाल
'गोदी-गोदी' करता खुद इक 'गोदी' में
बड़ा अनोखा है यह बंदर प्यारेलाल
यहाँ-वहाँ तू विष फैलाता रहता है
ऊपर वाले से कुछ तो डर प्यारेलाल
देश जाय चूल्हे में उसको क्या लेना
घूम रहा है मस्त कलंदर प्यारेलाल
खुद कालिख से पुता हुआ सब पे हँसता
बड़ा मस्त है देख करैक्टर प्यारेलाल
जो भी गलत करे उसकी निंदा करना
दल से उठना ही है बेहतर प्यारेलाल
गिरीश पंकज
प्यारेलाल के माध्यम से अच्छा व्यंग्य कसा है ।
ReplyDeleteआज के परिप्रेक्ष्य पर सार्थक व्यंगात्मक रचना..मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है..सादर..
ReplyDeleteबहुत प्रभावपूर्ण व्यंगात्मक रचना, बधाई.
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