जल है तो कल-कल सभी, जल है तो यह जान।
जल को जो दूषित करे, वह मूरख, नादान।।
जल धरती का देवता, जल धरती की शान।
नष्ट हुआ जल तो कहाँ, बचे किसी के प्रान।।
जल, पानी या नीर है, अलग-अलग सब नाम।
जीवन देना ही मगर, इन का असली काम।।
पानी तो पीयें मगर, करें न उसका नाश।
हर इक बूँद अमूल्य है, रखें संजो कर पास।।
'पानी' जिसके पास है, उसका ही सम्मान।
जिसमें कुछ पानी नहीं, क्या उसका सम्मान।।
जल के बिन कब जी सके, पशु-पक्षी-इनसान।
इसे बचा लें तो बचे, अपना सकल जहान।।
जल औ मन निर्मल रहे, तब है उसका मोल।
जैसे कब अच्छे लगे, हमको कड़वे बोल।।
बूँद-बूँद अति कीमती, ज्यों हीरे का दाम।
जल से है सारी चमक, दे सब को पैगाम।।
नीर बिना नीरस जगत, खेत और खलिहान।
इसे बचा कर राखिए, कहते सभी सियान।।
घर, बाहर गर जल बचा, किया देश का काम।
बूँद-बूँद में हैं रमे, सबके अल्ला-राम।।
@ गिरीश पंकज
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 21 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआपके रचे सारे दोहे सार्थक सन्देश दे रहे हैं ... सुन्दर दोहों के लिए आभार ...
ReplyDeleteआभार आपका संगीता जी।
ReplyDelete