Saturday, May 29, 2021

नवगीत/ वही एक अवधूत



गिरीश पंकज

आपसदारी तब तक ,
जब तक -
धन से हों मजबूत ।

लल्लो-चप्पो वाले सारे,
मंडराते हरदम ।
इतना प्यार दिखाते हैं के,
दिल होता बम-बम।
अंटी में है माल अगर तो,
लंपट लगे सपूत।।

बदला समय हुए गर कड़के,
गायब रिश्तेदार ।
दूर छिटक गए सारे बंदे,
दिखला थे प्यार।
पास न कोई भटके गोया,
निर्धन भया अछूत।।

फिर भी लोकाचार ज़रूरी,
मुस्कुराते रहिये।
कुटिलजनों से भी हँसकर के,
बतियाते रहिये।
कण्टक संग निर्वाह करे जो,
वही एक अवधूत।।


2 comments:

  1. रिश्तों की सच्चाई कहती सटीक ग़ज़ल । पैसा है तो सब पूछते अन्यथा तुम कौन ?

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  2. आभार। आपके कारण मेरे ब्लॉग तक अनेक लोग आए।

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