Saturday, May 29, 2021

व्यंग्य ग़ज़ल

रामलुभाया....


कुछ करते ना कुछ धरते हैं रामलुभाया
बातें बड़ी-बड़ी कहते हैं रामलुभाया

राजनीति में खपे हुए हैं जाने कब से
जनता से पिटते रहते हैं रामलुभाया

आते हैं वादे करते हैं मटक-मटक कर
मगर कहाँ दुख को हरते हैं रामलुभाया

तरह-तरह के स्वांग रचाने में हैं माहिर
इसीलिए जोकर लगते हैं रामलुभाया

पहले असली नेता ही ज्यादा मिलते थे
अब नकली सिक्के चलते हैं रामलुभाया

कब तक धोखा देते आखिर हार गए न!
हाथ मले औ सिर धुनते हैं रामलुभाया

जनता पर तो धौस जमाते रहते हैं बस
घर पर बीवी से डरते हैं रामलुभाया

राजनीति मतलब उनका है चोखा धंधा
सुबह शाम 'धंधा' करते हैं रामलुभाया

जाने कितने ठग मरते फिर पैदा हो कर
इक दिन हिट नेता बनते हैं रामलुभाया

15 comments:

  1. रामलुभाया के माध्यम से सटीक व्यंग्य किया है । बेहतरीन ग़ज़ल

    ReplyDelete
  2. रामलुभाया जैसों का ही जमाना है

    ReplyDelete
  3. सुंदर और सटीक ।

    ReplyDelete
  4. आदरणीय सर, आज पाँच लिंकों के द्वारा आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ । आपकी यह व्यंग्य रचना पढ़ कर मन आनंदित है । आपकी कविता ने हँसी से लोट -पोट भी कर दिया और ऐसे रामलुभाया का कच्चा - चिट्ठा खोल कर रख दिया । हृदय से अत्यंत आभार इस सुंदर रचना के लिए । आप जैसे वरिष्ठजन को जानना मेरे लिए सौभाग्य की बात है । मेरा आपसे अनुरोध है कि कृपया मेरे ब्लॉग पर भी आयें । मैं एक कॉलेज छात्रा हूँ और मैं ने पिछले साल ही अपना ब्लॉग खोला है ।आपके आशीष और मार्गदर्शन के लिए कृतज्ञ रहूँगी। मैं आपके ब्लॉग को फॉलो कर रही हूँ, यहाँ आपकी रचनाएं पढ़ने आती रहूँगी । आपको मेरा सादर प्रणाम व पुनः आभार ।

    ReplyDelete
  5. रामलुभाया का आभार, उन्हीं के कारण भूटान प्रवास के बाद आज जा कर पंकज जी से मिलना हो पाया

    ReplyDelete
  6. सुन्दर गुरुदेव यही राम्लुभावाना चरित्र वर्तमान में आसमान पर है इन्हीं की पहुँच हैं इन्हीं पर पूँछ है , शानदार

    ReplyDelete
  7. आदरणीय पंकज जी, गिरगिटिया नेता का चरित्र शब्दों में साकार हो गया। शब्दनगरी में खूब पढ़ा आपको।आज आपके ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 🙏🙏

    ReplyDelete