Wednesday, June 16, 2021

ग़ज़ल

चार दिन सीखे नहीं के सबको सिखलाने लगे
चंद ऐसे लोग ही हर सिम्त मंडराने लगे

हमने जिनको राह दिखलाई के तुम ऐसे चलो
आज वे बंदे हमें ही आँख दिखलाने लगे

दृष्टि लोगों की अजब धुंधली हुई इस दौर की
इसलिए सिक्के जो खोटे थे वही छाने लगे

राग दरबारी सुना करके सियासी मंच से
कुछ बड़े चालाक भत्ते और पद पाने लगे

बेच कर के आत्मा को पा गए सम्मान तो
चंद बौने और हलकट भाव अब खाने लगे

10 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ जून २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. क्षमा सहित,
      कृपया आमंत्रण १८ जून पढ़ा जाय।
      सादर।

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  2. "चंद बौने और हलकट भाव अब खाने लगे" - "अब" या "तब" .. छिछोरे ही भाव खाते हैं अक़्सर .. शायद ...

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  3. हमने जिनको राह दिखलाई के तुम ऐसे चलो
    आज वे बंदे हमें ही आँख दिखलाने लगे

    अक्सर यही होता है । गहरा कटाक्ष ।

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  4. राग दरबारी सुना करके सियासी मंच से
    कुछ बड़े चालाक भत्ते और पद पाने लगे
    वाह चाटुकारों और चारण कवियों को आइना दिखाती रचना | हार्दिक शुभकामनाएं गिरीश जी |

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