आराधन हो सच्चे मन से
जब ईश कृपा हो जाती है,
तब बिगड़े काज सँवरते हैं ।
जब आराधन सच्चे मन से,
अंतस में प्रभो उतरते हैं ।
श्रम जीवन की आधारशिला,
बिन इसके लक्ष्य नहीं मिलता।
जब घोर निशा मिट जाती है,
तब जल में सुप्त कमल खिलता।
जो जलज सरीखे रहते हैं,
होते ही प्रातः खिलते हैं ।।
गतिमान रहे अपना जीवन,
क्या तू तड़ाग का जल होगा ।
जो प्रवहमान सरिता सम है,
उस का ही निर्मल कल होगा ।
जो थमे पंथ में जड़ हो गए,
जो चलते वही निखरते हैं ।।
जीवन क्षणभंगुर है अपना,
जो करना है जल्दी कर लें।
गगरी-सा जीवन है सबका,
कुछ कर्म नेक उसमें भर लें।
निस्सार ज़िंदगी बेमानी,
कीड़े जीते और मरते हैं ।
जब ईश कृपा हो जाती है,
तब बिगड़े काज सँवरते हैं।।
वाह
ReplyDeleteगतिमान रहे अपना जीवन,
ReplyDeleteक्या तू तड़ाग का जल होगा ।
जो प्रवहमान सरिता सम है,
उस का ही निर्मल कल होगा ।
जो थमे पंथ में जड़ हो गए,
जो चलते वही निखरते हैं ।।
बहुत सुंदर गीत , तालाब का जल कहाँ निर्मल रहता नदी सम ही बहना होगा ।
सुबदर प्रस्तुति ।
सुंदर *
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