मित्र मुसीबत में सदा, होता खूब सहाय।
जब आये संकट कोई, बढ़कर हमें बचाय।।
सुख में रहते साथ पर, दुख में जाते भूल।
ऐसे भी कुछ मित्र हैं, केवल नकली फूल।।
स्वारथ के इस दौर में, बिल्कुल नहीं विचित्र ।
लोग उसे ही दे दगा, बनते जिसके मित्र।।
मित्र महकता इत्र-सा, कभी न छोड़े साथ।
पर जो नकली क्या पता, कब दे दे वह घात।।
मित्र बने और एक दिन, माँगा बड़ा उधार ।
खोज रहे हम बाद में, अब वे कहीं फरार।।
@ गिरीश पंकज
बेहतरीन दोहे ।
ReplyDeleteहर दोहा सार्थक संदेश देता हुआ ।
आपकी लिखी रचना सोमवार 2 ,अगस्त 2021 को साझा की गई है ,
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
मित्र बने और एक दिन,
ReplyDeleteमाँगा बड़ा उधार ।
खोज रहे हम बाद में,
अब वे कहीं फरार।।
व्वाहहहहह..
सादर नमन
मित्र महकता इत्र-सा, कभी न छोड़े साथ।
ReplyDeleteपर जो नकली क्या पता, कब दे दे वह घात।। बहुत सुंदर रचना...।
सत्य का दर्पण ... अत्यंत सुंदर दोहे।
ReplyDeleteप्रणाम
सादर।
बदलते वक़्त के साथ मित्र की परिभाषा भी बदल रही !! लेकिन असली मित्र अभी भी साथ निभाते हैं !! सुंदर दोहे !!
ReplyDeleteआजके छद्म मित्रों का सटीक चरित्र चित्रण आदरणीय पंकज जी। ये गति भुगतने वाले आसपास ही मिल जायेंगे
ReplyDeleteमित्र बने और एक दिन, माँगा बड़ा उधार ।
खोज रहे हम बाद में, अब वे कहीं फरार।।
😀😀😀😀😀🙏🙏
बहुत सुंदर सार्थक दोहे।आज के दौर की मित्रता का सुंदर चित्रण।
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteलाजवाब दोहे।
मित्र एक पर रंग अनेक । बहुत ही सुन्दर कहा ।
ReplyDeleteमित्र की अन्य परिभाषा...
ReplyDeleteदोस्त बनकर गले ललगाता है वही
पीठ पर खंजर भी लगाता है वही जैसी!
सभी मित्रों का आभार
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