हिंदी : चार मुक्तक और एक गीतिका
>> Monday, September 13, 2021
1
जिसे खुसरो न दुलराया, कबीरा ने जिसे पाला।
जो तुलसी के यहां विकसी, जिसे रसखान ने ढाला।
मोहम्मद जायसी की है ये, रहिमन की धरोहर है
ये हिन्दी ओढ़ कर बैठी है, उर्दू का भी दोशाला।।
2
दिलों पर राज करती है सभी को यह लुभाती है
किसी की हो कोई भाषा, उसे भी यह सुहाती है
ये हिंदी है जिसे दुनिया भी अब स्वीकार करती है
जिसे रसखान भी रचते,जिसे मीरा भी गाती है।
3
जिसे हम बोलते जैसा ये वैसा ही लिखाती है
अनोखी है ये हिंदी जो सभी को रास आती है
मगर जब राजनीति आ गई तो दुख हुआ इसको
हृदय हिंदी का है छलनी ये अब आंसू बहाती है।
4
ये मिट्टी अपनी भाषा के बिना अब छटपटाती है
ये दुनिया देखती है और हँसी हरदम उड़ाती है
उठो, आओ चलो हिंदी बने इस राष्ट्र की भाषा
हमारी मां हमारी 'मौसियों' संग खिलखिलाती है।
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गीतिका..
माँ शारद का वर है हिंदी
सहज, सरल,सुंदर है हिंदी
बिन इसके गूँगा है भारत
अभिव्यक्ति का स्वर है हिंदी
जिसमें अपना सुख-दुःख कहते
ऐसा अनुपम स्वर है हिंदी
हर भाषा है मौसी इसकी
सबका अपना घर है हिंदी
मन भी उड़ता जिसको पाकर
वह चमकीला पर है हिंदी
अँगरेज़ी के मन में अब तक
बसा हुआ इक डर है हिंदी
फैल रही खुशबू-शाखाएँ
फूल है वो, तरुवर है हिंदी
लाख कोशिशें हुई दमन की
पर उन्नत इक सर है हिंदी
सबको प्यार मोहब्बत बांटे
अल्ला है, ईश्वर है हिंदी
@ गिरीश पंकज 🙏
2 टिप्पणियाँ:
वाह| हिंदी दिवस की शुभकामनाएं |
मुक्तक और गीतिका दोनो ही अत्यंत प्रभावी । 🙏🙏
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