''सद्भावना दर्पण'

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नये ज़माने की हिंदी...

>> Wednesday, September 15, 2021

नये ज़माने की हिंदी तो खिली-खिली है
अँगरेज़ी के साथ भले ही घुली-मिली है

हिंदी माँ की शान निराली देखी हमने
जितनी हुई पुरानी उतनी नई-नई है

आने दो हर भाषा की खुशबू भी आये
हिंदी बोली, यहाँ नहीं कुछ तंगदिली है

हिंग्रेजी बोलो चाहे तुम कह लो हिंग्लिश
हिंदी की अब तो जैसे इक लहर चली है

हिंदी यानी सोंधी खुशबू है मिट्टी की
भाषा क्या यह तो मिश्री की एक डली है

हिंदी भारत माता के माथे की बिंदी
मेरी-तेरी हम सबकी पहचान यही है

अपनी भाषा पर जिसको पंकज है गौरव
वह भाषा ही अकसर फूली और फली है

@ गिरीश पंकज

3 टिप्पणियाँ:

संगीता स्वरुप ( गीत ) September 16, 2021 at 12:08 AM  

बिल्कुल सही कहा कि वही भाषा फूली फली जिस पर लोग गर्व करते हैं । यदि हिंदी को सुदृढ करना है तो इस पर गर्व करना होगा ।
बेहतरीन प्रस्तुति

सुशील कुमार जोशी September 16, 2021 at 8:22 AM  

शुभकामनाएं

डॉ 0 विभा नायक September 22, 2021 at 1:41 AM  

सही कहा सर। हिंन्दी वास्तव में माथे की बिंदी ही है और आज के परिप्रेक्ष्य में तो यह स्वयंसिद्ध सत्य है।

सुनिए गिरीश पंकज को

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