Wednesday, October 27, 2021

ग़ज़ल

जो हैं अपने उन सबों से बेरुखी अच्छी नहीं
दिल का ये तो मामला है दिल्लगी अच्छी नहीं

सिर्फ अपने ही लिए जीते रहे तो क्या जिया
ज़िंदगी तो है मगर यह ज़िंदगी अच्छी नहीं

सिर्फ अपने ही लिए हमने उजाला गर किया
सच कहूँ तो मुझको ऐसी रोशनी अच्छी नहीं

जो दिलों में नफ़रतों के बीज बोती है यहाँ
लाख उम्दा हो बहर पर शाइरी अच्छी नहीं

आग दोनों ही तरफ हो तब तो कोई बात है
एक तरफा व्यर्थ है यह आशिकी अच्छी नहीं

गिरीश पंकज

No comments:

Post a Comment