लोकतंत्र है आखिर तुम को,
झुकना होगा।
जनता जो चाहे वैसा ही,
करना होगा।।
जन-गण के मन को हम समझें,यही न्याय है।
जनता की पीड़ा का मतलब बड़ी हाय है।
जो न समझे, उसको इक दिन मिटना होगा।।
लोकतंत्र है आखिर, तुम को झुकना होगा।
अकड़ नहीं, बस विनम्र-भाव की जय होती है।
तभी किसी की मंज़िल आखिर तय होती है।
आगे बढ़ना है तो, किंचित रुकना होगा।।
लोकतंत्र है आखिर तुम को झुकना होगा।।
आंसू, आहें और कराहें, आने मत दो।
लोकतंत्र में काली बदली छाने मत दो।
वरना कुरसी के सूरज को ढलना होगा।
लोकतंत्र है आखिर, तुम को झुकना होगा।।
लोकतंत्र में झुकना यानी जनगण का सम्मान।
नहीं सहेगा अकड़ कोई भी यह कुरसी ले जान।
जन मानस के साथ सभी को चलना होगा।
लोकतंत्र है आखिर, तुम को झुकना होगा।।
देश के मन को जो भी समझे, वह सच्ची सरकार।
जो न समझे निबट गयी वो, देखा है हर बार।
जनता राजा जैसा चाहे, ढलना होगा।।
लोकतंत्र है आखिर तुम को,
झुकना होगा।
जनता जो चाहे वैसा ही,
करना होगा।।
गिरीश पंकज
लाजवाब
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 21 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
समसामयिक और यथार्थपर गहन दृष्टिकोण । सार्थक अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteआंसू, आहें और कराहें, आने मत दो।
ReplyDeleteलोकतंत्र में काली बदली छाने मत दो।
वरना कुरसी के सूरज को ढलना होगा।
लोकतंत्र है आखिर, तुम को झुकना होगा।।
बिल्कुल सही कहा आपने!
बहुत ही उम्दा रचना!
लोकतंत्र की सभी विशेषताओं को कहती सुन्दर रचना .
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