Saturday, January 22, 2022

ग़ज़ल

एक नहीं, दो बार नहीं हर बार बताता है
कौन यहाँ कैसा है यह किरदार बताता है

कभी-कभी शमशानों के भी पास से गुजरो तुम
बिना कहे कुछ वह जीवन का सार बताता है

कल जैसा था वैसा बिलकुल आज नहीं लगता
मेरे शहर की हालत अब अख़बार बताता है

कितनी है तहज़ीब किसी में घर जाकर देखो
कैसे वह करता स्वागत-सत्कार बताता है

जीवन जीना एक कला ये सच तो है लेकिन
कैसे जीना है पंकज फ़नकार बताता है

गिरीश पंकज

8770969574

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