''सद्भावना दर्पण'

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गीत/ जंगल के फूल

>> Friday, February 25, 2022



हम जंगल के फूल,
जगत 
हम भी महकाते हैं।

हमें न देखे कोई लेकिन,
हम भी खिलते हैं ।
और एक दिन झर करके,
धरती से मिलते हैं ।
जीवन का जो सार  वही,
सबको बतलाते हैं।।

कुछ को जंगल, कुछ को गमले,
कुछ पाते उद्यान।
सबको मिला बराबर पानी,
जीने का सामान।
सब खिलते हैं और यहाँ,
खुशबू फैलाते हैं।।

सबका अपना काम यहाँ पर,
सबका है कुछ धर्म।
जिसके हिस्से जितना आया,
करे वो उतना कर्म।
हम भी औरों के जैसे,
बस फ़र्ज़ निभाते हैं।।

@ गिरीश पंकज

2 टिप्पणियाँ:

संगीता स्वरुप ( गीत ) February 26, 2022 at 12:03 AM  

जंगल के फूल भी अपना फर्ज निबाहते हैं लेकिन आदमी अपने फ़र्ज़ भूलता जा रहा है। ।
बेहतरीन रचना ।

girish pankaj February 27, 2022 at 10:50 PM  

आभारम

सुनिए गिरीश पंकज को

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