Thursday, April 28, 2022

जनगीत/ तब है पूँजी का मानी



ये विकास के नए "भगीरथ''
नाम है इनका आडानी।
पेड़ काटकर रचते रहते,
उद्यम की ये अजब कहानी।

कल तक जो इन के विरोध में,
चीख-चीख चिल्लाते थे।
हाय-हाय खा गए लुटेरे,
अपने अश्रु बहाते थे।
आज वही उसके दलाल बन,
करते हैं अब मनमानी ।
ये विकास के नए 'भगीरथ',
नाम है जिनका आडानी।।

सत्ता और पूंजीपतियों का ,
यह गठजोड़ पुराना है ।
नाम कोई हो लेकिन धंधा,
सब जाना-पहचाना है।
दल चाहे कोई भी हो,
बिकने की सब ने ठानी।।
ये  विकास के नए 'भगीरथ'
नाम है जिनका आडानी।

पूँजीपतियों की गोदी में,
बैठी दिखती हर सरकार।
जनता चीख रही है लेकिन
उन पर हँसते हैं मक्कार।
लूट खसोटो के प्रतीक हैं,
ये भी, जो हैं अंबानी।।

नहीं बुराई धन अर्जन में,
लेकिन इसका ध्यान रहे।
नष्ट न हो हरियाली अपनी ,
हरित ये हिंदुस्तान रहे ।
जनकल्याण करो  तो जानें,
तब है पूँजी का मानी।।

 ये विकास के नए 'भगीरथ'
 नाम है इनका आडानी।

@ गिरीश पंकज

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