''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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ग़ज़ल

>> Saturday, May 21, 2022

काया चली गई लेकिन जो यश था बचा रहा
जिसने जैसा किया तो उसका वैसा सिला रहा

क्षणभंगुर जीवन के सच को जिसने समझ लिया
उसका हर पल सत्कर्मों की खातिर लगा रहा

इक दूजे को दोष ही देना फितरत है उसकी
खुद ही कालिख है चेहरे पर सब को दिखा रहा

ऊपर उठने की ख्वाहिश में कुछ नीचे गिर गए
मन है मैला लेकिन बंदा तन को सजा रहा

जो सत्ता में आया समझो तानाशाह बना
हर कोई चमड़े का अपना सिक्का चला रहा

अपनी एक लकीर कभी जो खींच नहीं पाया
वह बंदा दूजे जी की देखो बढ़कर मिटा रहा

अपने को धोखा देने का काम न कर पंकज
देख तुझे तेरा दर्पण ही सब कुछ बता रहा

@ गिरीश पंकज

9 टिप्पणियाँ:

girish pankaj May 22, 2022 at 9:17 PM  

आभार आपका

Jyoti khare May 22, 2022 at 11:42 PM  

बेहद उम्दा गज़ल भाई जी

Sweta sinha May 23, 2022 at 3:33 AM  

सराहनीय गज़ल सर।
प्रणाम
सादर।

दीपक कुमार भानरे May 23, 2022 at 7:13 AM  

उम्दा अभिव्यक्ति आदरणीय ।

मन की वीणा May 24, 2022 at 1:08 AM  

सार्थक चिंतन लिए शानदार अस्आर।
हर शेर कुछ कह रहा है।
उम्दा प्रस्तुति।

रेणु May 24, 2022 at 10:58 AM  

ऊपर उठने की ख्वाहिश में कुछ नीचे गिर गए
मन है मैला लेकिन बंदा तन को सजा रहा///
बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति आदरनीय पंकज जी।सभी शेर झझकोरने वाले हैं।सादर 🙏🙏

girish pankaj May 25, 2022 at 12:04 AM  

अभी का आभार!

Anonymous June 2, 2022 at 5:47 AM  

आभार

Anonymous June 2, 2022 at 5:47 AM  

धन्यवाद

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