ग़ज़ल..
>> Wednesday, May 25, 2022
नैतिकता जब विदा हो गई
दुनिया भी क्या से क्या हो गई
देख रहे सब हरकत फूहड़
लड़की जब से लड़का हो गई
गंगा में कचरा क्या डाला
शुद्ध नदी भी कचरा हो गई
लड़की ने जब ठान लिया तो
प्रेरक-सुंदर कथा हो गई
हम थोड़ा-सा मुस्कुराए क्या
आसपास में बस चर्चा हो गई
ठगते हैं, फिर मुस्काते हैं
यही सियासी अदा हो गई
भले-बुरे में भला चुनेंगे
इसमें भी क्या दुविधा हो गई
@गिरीश पंकज
दैनिक समाचार पचीसा, रायपुर में लेख
5 टिप्पणियाँ:
ठगते हैं, फिर मुस्काते हैं
यही सियासी अदा हो गई ।
हर शेर मारक है ।। बढ़िया और सार्थक ग़ज़ल
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (२७-०५-२०२२ ) को
'विश्वास,अविश्वास के रंगों से गुदे अनगिनत पत्र'(चर्चा अंक-४४४३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
ठगते हैं, फिर मुस्काते हैं
यही सियासी अदा हो गई
भले-बुरे में भला चुनेंगे
इसमें भी क्या दुविधा हो गई
वाह!!!!
बहुत ही सुंदर गजल
लाजवाब।
आप सब का आभार
अच्छी और सुंदर गज़ल
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