''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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ग़ज़ल..

>> Wednesday, May 25, 2022

नैतिकता जब विदा हो गई
दुनिया भी क्या से क्या हो गई

देख रहे सब हरकत फूहड़
लड़की जब से लड़का हो गई
गंगा में कचरा क्या डाला
शुद्ध नदी भी कचरा हो गई

लड़की ने जब ठान लिया तो
प्रेरक-सुंदर कथा हो गई

हम थोड़ा-सा मुस्कुराए क्या
आसपास में बस चर्चा हो गई

ठगते हैं, फिर मुस्काते हैं
यही सियासी अदा हो गई

भले-बुरे में भला चुनेंगे
इसमें भी क्या दुविधा हो गई

@गिरीश पंकज

दैनिक समाचार पचीसा, रायपुर में लेख

5 टिप्पणियाँ:

संगीता स्वरुप ( गीत ) May 26, 2022 at 2:50 AM  

ठगते हैं, फिर मुस्काते हैं
यही सियासी अदा हो गई ।

हर शेर मारक है ।। बढ़िया और सार्थक ग़ज़ल

अनीता सैनी May 26, 2022 at 4:08 AM  


जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (२७-०५-२०२२ ) को
'विश्वास,अविश्वास के रंगों से गुदे अनगिनत पत्र'(चर्चा अंक-४४४३)
पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर

Sudha Devrani May 27, 2022 at 3:47 AM  

ठगते हैं, फिर मुस्काते हैं
यही सियासी अदा हो गई

भले-बुरे में भला चुनेंगे
इसमें भी क्या दुविधा हो गई

वाह!!!!
बहुत ही सुंदर गजल
लाजवाब।

girish pankaj May 27, 2022 at 4:46 AM  

आप सब का आभार

Jyoti khare May 27, 2022 at 10:01 AM  

अच्छी और सुंदर गज़ल

सुनिए गिरीश पंकज को

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