नवगीत/घिर गए....
>> Tuesday, July 26, 2022
यश की लिप्सा में
कुछ घिर गए..
कदम-कदम पर समझौते थे,
और आत्मा भी रोई।
देख के अपने पाप बिचारी-
सुबह-शाम उसको धोई।
मिल जाए कुछ लाभ सोच कर,
लोग बहुत नीचे तक गिर गए।
यश की लिप्सा में कुछ घिर गए।
जो थे लंपट वही भा गए।
नैतिकता को बेच खा गए ।
पुण्य कमाने निकले थे पर
लोग पाप नगरी में आ गए।
जहां हुआ अपमान वहीं कुछ
यश पाने की खातिर फिर गए।।
यश की लिप्सा में कुछ घिर गए।
साथ बुरे लोगों का लेकिन
मन में थोड़ी-सी दुविधा थी।
लम्पट ही कुछ दिलवाएंगे,
वहाँ यही तो इक सुविधा थी।
हुआ पाप पर पुण्य कमाने ,
दौड़ भाग करके मंदिर गए।
यश की लिप्सा में कुछ घिर गए।
@ गिरीश पंकज
3 टिप्पणियाँ:
यश की लिप्सा में न जाने लोग क्यों इतना नीचे गिर जाते हैं । सार्थक संदेश देता अच्छा नव गीत ।
यथार्थ का चित्रण करता सुंदर सार्थक नवगीत ।
आओकी ये पोस्ट हलचल पर है आज । कमेंट्स लगता है स्पैम में जा रहे हैं ।
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