''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
&COPY गिरीश पंकज संपादक सदभावना दर्पण. Powered by Blogger.

ग़ज़ल

>> Monday, August 29, 2022

आदमी वैसा नहीं हूँ
भीड़ का हिस्सा नहीं हूँ

ये ज़माना भूल जाए
ऐसा भी किस्सा नहीं हूँ

बोलता हूँ सच हमेशा
इसलिए अच्छा नहीं हूँ

हाँ-में-हाँ कैसे मिलाऊँ
बिक चुका बंदा नहीं हूँ

प्रेम की हूँ इक नदी मैं
आग का दरिया नहीं हूँ

मत खड़े हो जाओ मुझ पे
मैं तिरा कंधा नहीं हूँ

दूध की मक्खी निगल लूँ
मैं कोई अंधा नहीं हूँ

@ गिरीश पंकज

0 टिप्पणियाँ:

सुनिए गिरीश पंकज को

  © Free Blogger Templates Skyblue by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP