''सद्भावना दर्पण'

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ग़ज़ल

>> Thursday, September 29, 2022

भ्रम से हमें निकलना होगा
अभी दूर तक चलना होगा

आगे होंगी बाधाएँ भी
लेकिन हमें संभलना होगा

कौन यहाँ रहता है हरदम
हमको भी तो ढलना होगा

आज मिला है किस्मत से जो
मौका शायद कल ना होगा

हाथ-पे-हाथ धरे मत बैठो
मुद्दा ऐसे हल ना होगा

दूर अंधेरा करना है तो
दीपक बन के जलना होगा

देश हमारा इसकी खातिर
जीना ही क्या मरना होगा

@ गिरीश पंकज

3 टिप्पणियाँ:

रेणु December 19, 2022 at 9:47 AM  

बहुत बढ़िया शेरों से सजी रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं पंकज जी 🙏

Gajendra Bhatt "हृदयेश" December 19, 2022 at 9:34 PM  

हाथ-पे-हाथ धरे मत बैठो
मुद्दा ऐसे हल ना होगा... कितनी सुन्दर बात कह दी है आपने!...सुन्दर रचना!

Sudha Devrani December 20, 2022 at 3:39 AM  

दूर अंधेरा करना है तो
दीपक बन के जलना होगा

देश हमारा इसकी खातिर
जीना ही क्या मरना होगा
वाह!!!
लाजवाब गजल ।

सुनिए गिरीश पंकज को

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