ग़ज़ल
>> Thursday, September 29, 2022
भ्रम से हमें निकलना होगा
अभी दूर तक चलना होगा
आगे होंगी बाधाएँ भी
लेकिन हमें संभलना होगा
कौन यहाँ रहता है हरदम
हमको भी तो ढलना होगा
आज मिला है किस्मत से जो
मौका शायद कल ना होगा
हाथ-पे-हाथ धरे मत बैठो
मुद्दा ऐसे हल ना होगा
दूर अंधेरा करना है तो
दीपक बन के जलना होगा
देश हमारा इसकी खातिर
जीना ही क्या मरना होगा
@ गिरीश पंकज
3 टिप्पणियाँ:
बहुत बढ़िया शेरों से सजी रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं पंकज जी 🙏
हाथ-पे-हाथ धरे मत बैठो
मुद्दा ऐसे हल ना होगा... कितनी सुन्दर बात कह दी है आपने!...सुन्दर रचना!
दूर अंधेरा करना है तो
दीपक बन के जलना होगा
देश हमारा इसकी खातिर
जीना ही क्या मरना होगा
वाह!!!
लाजवाब गजल ।
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