मुस्कान दिवस पर विशेष
>> Friday, October 7, 2022
शैतानों की बस्ती में इनसान बचा कर रखना है
अपने भीतर अपना इक भगवान बचा कर रखना है
चारों और रुलाने वाली हालत है फिर भी हमको
अपने अधरों पर थोड़ी मुस्कान बचा कर रखना है।
आकर हमलावरों ने अपना लूट लिया सारा वैभव
सावधान रहना है सारा ज्ञान बचा कर रखना है
कुछ पाने की खातिर नीचे गिर जाएं यह ठीक नहीं
जैसे भी हम हैं खुद का सम्मान बचा कर रखना है
खुद्दारी के साथ क़लम औ' दो सूखी रोटी पंकज
जीने का बस यह थोड़ा सामान बचा कर रखना है
@ गिरीश पंकज
6 टिप्पणियाँ:
चारों और रुलाने वाली हालत है फिर भी हमको
अपने अधरों पर थोड़ी मुस्कान बचा कर रखना है।
सच को कहती सुंदर रचना । प्रेरक ।
मुस्कान जरूरी है। सुंदर रचना
खुद्दारी के साथ क़लम औ' दो सूखी रोटी पंकज
जीने का बस यह थोड़ा सामान बचा कर रखना है
.. सकारात्मक भाव से परिपूर्ण प्रेरक रचना।
आह हां! शानदार ग़ज़ल.
बहुत अच्छी गज़ल आदरणीय सर।
हर बंध लाज़वाब है।
प्रणाम
सादर।
वाह!!!!
बहुत ही लाजवाब गजल ।
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