शरद पूर्णिमा पर एक गीत/ पूरा-पूरा चाँद
>> Sunday, October 9, 2022
आज खिला मेरे आँगन में,
एकदम पूरा-पूरा चाँद।।
कहीं छिपा बैठा था यह तो,
हुए अभी दीदार ।
देख के इसकी सुंदरता को,
मन में जागा प्यार।
अरसे बाद गगन पर मैंने,
देखा ऐसा प्यारा चाँद।।
मन को शीतल करती आभा,
अद्भुत नेह जगाती।
खत्म विकारों को करती यह,
केवल प्रीत बढ़ाती।
हर मन में बस जाए आ कर
ऐसा न्यारा-न्यारा चाँद।।
रात शरद की बात कह रही,
जीवन हो मधुरम।
सुख की हो भरमार यहाँ बस,
दुख हों थोड़े कम।
ऐसा ही होगा, कहता है,
हमसे-तुमसे अच्छा चाँद।।
आज खिला मेरे आँगन में
एकदम पूरा-पूरा चाँद।।
@ गिरीश पंकज
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