''सद्भावना दर्पण'

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>> Wednesday, January 11, 2023

कविता/ पहाड़ ने कहा 

पहाड़ को अगर तुम छेड़ोगे
तो पहाड़ तुम्हें नहीं छोड़ेगा 
खंड-खंड कर देगा एक दिन तुम सब को
जैसे सीता की पुकार पर 
फट गई थी धरती 
उसी तरह प्रकृति की चीत्कार से 
फट पड़ेगा पहाड़ 
समा जाएँगे उसमें 
न जाने कितने जोशीमठ 
इसलिए सावधान ! 
पहाड़ को पहाड़ रहने दो 
उसे नोट छापने की मशीन मत बनाओ 
मत चलाओ पहाड़ की छाती पर कुदाल 
वरना एक दिन बुरा होगा हाल
 अभी तो सिर्फ घरों में आई है दरारें
कल को न जाने कितने घर 
भरभरा कर गिर जाएँगे 
ताश के पत्तों की तरह
तथाकथित विकास और 
अधिकाधिक धन की लालसा में 
ये जो तुम बना रहे हो  न
नए-नए बांध और गगनचुंबी इमारतें 
एक दिन ले डूबोगे खुद को 
और दूसरों को भी 
रह-रहकर चेताता रहता है पहाड़
सावधान करता है तुमको
विनाश की छिटपुट वारदातों के साथ
 मगर अरे ओ मनुष्य!
 अकसर ही तुम
कहाँ समझ पाते हो  कोई बात। 
समझते तो हो मगर तब तक
बहुत देर हो जाती है
भगवान जाने तुम्हारी चेतना 
किस मठ में जा कर सो जाती है?

@ गिरीश पंकज

4 टिप्पणियाँ:

Rupa Singh January 12, 2023 at 5:43 PM  

कहते हैं कि प्रकृति अपना संतुलन खुद बना लेती है। हम मनुष्यों को ये बात समझ नहीं आती और प्रकृति से छेड़ छाड़ करते रहते।

सुंदर रचना...

संगीता स्वरुप ( गीत ) January 12, 2023 at 10:27 PM  

अर्थशास्त्र का नियम है ...... प्रकृति अपना संतुलन स्वयं करती है । हम मनुष्य अनजानी प्राकृतिक आपदाएँ देखते हैं , सहते हैं ,लेकिन समझते नहीं । जोशी मठ एक जीता जागता उदाहरण है ।
समसामयिक और चेतावनी देती रचना ।

विश्वमोहन January 13, 2023 at 5:57 AM  

सौ टके की बात।

Sudha Devrani January 13, 2023 at 7:17 AM  

पहाड़ को अगर तुम छेड़ोगे
तो पहाड़ तुम्हें नहीं छोड़ेगा
सबको खंड-खंड कर देगा
पहाड़ को पहाड़ रहने दो
नोट छापने की मशीन मत बनाओ
बहुत सटीक ...
पर यहाँ तो विकास के नाम पर विनाश का खेल जारी है।
बिना जाँच के सीधे तोड़फोड़ और नतीजा भुगतने को बेचारे ग्रामीण ।

सुनिए गिरीश पंकज को

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