गीता प्रेस का अपमान नीचता से कम नहीं
>> Tuesday, June 20, 2023
गीता प्रेस और गांधी शांति पुरस्कार
गिरीश पंकज
भारतीय समाज के नव निर्माण में गीता प्रेस, गोरखपुर योगदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता. उनकी श्रेष्ठ धार्मिक,नैतिक पुस्तकें घर-घर में पढ़ी जाती रही हैं. शायद ही कोई अभागा हिंदू परिवार हो, जहां गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित कोई ग्रंथ विद्यमान न होगा. रामायण, रामचरितमानस, श्रीमद भगवदगीता अथवा हनुमान चालीसा हर घर में मिल जाएगी. आज से सौ साल पहले हनुमानप्रसाद पोद्दार जी ने गीता प्रेस गोरखपुर की स्थापना की थी. बाद में "कल्याण" नामक पत्रिका भी 1926 से प्रकाशित होने लगी, जो आज भी नियमित रूप से प्रकाशित हो रही है. गीता प्रेस ने केवल धार्मिक साहित्य प्रकाशित नहीं किया, वरन नैतिकता के बीज रोपने के लिए अनेक प्रेरक पुस्तकें प्रकाशित भी बहुत कम कीमत में प्रकाशित की. ऐसे गीता प्रेस को अभी हाल ही में जब एक करोड़ रुपये की राशि वाला अंतरराष्ट्रीय महात्मा गांधी शांति पुरस्कार प्राप्त हुआ। इसमें एक करोड़ की राशि प्रदान की जाती है। आश्चर्य हुआ यह देख कर कि कांग्रेस के एक नेता ने पता नहीं किस झोंक में आकर यह कह दिया कि "गीता प्रेस को सम्मानित करना वीर सावरकर या गोडसे को सम्मानित करने जैसा है".शर्म आती है ऐसे लोगों पर जिन्होंने गीता प्रेस गोरखपुर के अवदान को इस तरह से खारिज करने की कोशिश की। विपक्ष में होने का यह मतलबतो नहीं कि सरकार के अच्छे निर्णयों की भी आलोचना की जाए? गीता प्रेस की महानता देखिए कि उसमें सम्मान तो स्वीकार किया लेकिन राशि नहीं ली, और यह कहा कि यह राशि किसी दूसरे काम में खर्च की जाए. जबकि गीता प्रेस खुद संकट में रहा. बीच में तो इसके बंद होने की अफवाह भी उड़ी. लेकिन गनीमत है ऐसा नहीं हुआ . मैंने बचपन से ही गीता प्रेस की पुस्तकें पढ़ कर थोड़े_बहुत संस्कार ग्रहण किए .कल्याण का तो आज भी नियमित पाठक हूं. जब मैंने अपना उपन्यास "एक गाय की आत्मकथा" लिखी, तब कल्याण के "गौ अंक" से मुझे काफी सामग्री मिली. कल्याण का हर साल निकलने वाला विशेषांक पठनीय होता है, संग्रहणी भी. हर पुस्तक में नैतिक संदेश मुख्य होता है . अगर आज गीता प्रेस गोरखपुर नहीं होता तो हमारा सनातन समाज नि:संदेह दिशाहीनता का शिकार हो सकता था . गीता प्रेस के महान योगदान की मुक्त कंठ से सराहना की जानी चाहिए लेकिन पता नहीं कैसे एक घटिया नेता ने गीता प्रेस को सम्मानित किये जाने की तुलना गोडसे से कर दी ! लगता है इसने दुर्भाग्यवश कभी गीता प्रेस का कोई साहित्य पढ़ा ही नहीं. अगर पढ़ा होता तो उनका अनर्गल बयान सामने नही आता. अगर कांग्रेस के इस नेता के बयान की निंदा नहीं करती, इस से अपने आपको अलग नहीं करती, तो इस देश की जनता को कांग्रेस के चरित्र के बारे में भी सोचना चाहिए. आज गीता प्रेस को विश्वस्तर पर सम्मान मिला है .इसी बहाने एक बार फिर गीताप्रेस की चर्चा हो रही है. फेसबुक के अपने उन परम मित्रों से आग्रह करूंगा जिन्होंने कभी गीता प्रेस का कोई साहित्य नहीं पढ़ा है. उन से अनुरोध है कि एक बार भी गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित पुस्तकों को पढ़ें. संभव हो तो कल्याण पत्रिका को भी नियमित रूप से पढ़ें. कल्याण में सिर्फ धार्मिक बातें नहीं होती, मनुष्यता से जुड़ी अनेक कथाएं भी होती हैं. गीताप्रेस को अंतरराष्ट्रीय स्तर का सम्मान दिए जाने की जितनी भी तारीफ की जाए, कम है.
सरकारी विज्ञप्ति में गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार 2021 देते हुए बहुत सही कहा गया है कि "मानवता के सामूहिक उत्थान में योगदान देने में गीता प्रेस के महत्वपूर्ण और अद्वितीय योगदान को मान्यता देता,है जो सच्चे अर्थों में गांधीवादी जीवन का प्रतीक है ।" यह पुरस्कार सन 1995 से शुरू हुआ, तब महात्मा गांधी की 125 वीं जयंती मनाई जा रही थी। 6ह कितनी बड़ी बात है कि गीता प्रेस ने 14 भाषाओं में 41.7 करोड़ पुस्तकें प्रकाशित की । यह बहुत बड़ा कीर्तिमान है। प्राप्त जानकारी के अनुसार 29 अप्रैल 1923 में जयदयाल गोयनका और हनुमान प्रसाद पोद्दार ने गीता प्रेस और कल्याण पत्रिका की स्थापना की थी। यह एक बड़ा कीर्तिमान है कि गीताप्रेस ने श्रीमद्भागवत गीता की 16.21 करोड़ प्रतियां प्रकाशित की। रामचरित मानस और रामायण की बीबी करोड़ों प्रतियां अब तक छप चुकी हैं । कल्याण भी देश भक्त के लाखों पाठकों के सहारे निकल रही है। इसमें किसी भी किस्म का विज्ञापन नहीं छापा जाता। यह उल्लेखनीय पक्ष है।
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