नई ग़ज़ल
>> Saturday, August 22, 2009
बेच डाला जिस्म और ईमान रोटी के लिये
क्या से क्या होता गया इन्सान रोटी के लिये
खून के रिश्ते कलंकित हो गए बाज़ार मे
आदमी कितना गिरे भगवान रोटी के लिये
क्या पराये और क्या अपने सभी का कत्ल कर
आदमी अब बन गया शैतान रोटी के लिये
भूख से लाचार लोगो की फसल अब उग रही
दिख रहा बदहाल हिन्दुस्तान रोटी के लिए
ज़िन्दगी के वास्ते रोटी ज़रूरी है मगर
कर रहा इंसान विष का पान रोटी के लिए
था बड़ा खुद्दार लेकिन वक्त कुछ ऐसा पड़ा
कर दिया नीलाम हर सम्मान रोटी के लिए
भूख से कोई मरे तो शर्म तक आती नही
मौन क्यो बैठा है संविधान रोटी के लिए
न्याय और कानून-सत्ता हर तरफ़ बाज़ार है
डगमगाता ही रहा मीजान रोटी के लिए
भूख से पागल हुआ तो जानवर बन कर लिया
आदमी ने आदमी की जान रोटी के लिए
भूख से तो मर गया पंकज मगर वह कह गया
क्यों भला बेचू अरे सम्मान रोटी के लिए।
गिरीश पंकज
6 टिप्पणियाँ:
आपका हिन्दी चिट्ठाजगत में हार्दिक स्वागत है. आपके नियमित लेखन के लिए अनेक शुभकामनाऐं.
एक निवेदन:
कृप्या वर्ड वेरीफीकेशन हटा लें ताकि टिप्पणी देने में सहूलियत हो. मात्र एक निवेदन है बाकि आपकी इच्छा.
वर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:
डैशबोर्ड>सेटिंग्स>कमेन्टस>Show word verification for comments?> इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..कितना सरल है न हटाना और उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानिये!!.
umda rachna ke liye badhai. blog jagat men swagat , shubhkaamnayen.
बहुत ही उम्दा...साधुवाद. जारी रहें.
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उल्टा तीर पर पूरे अगस्त भर आज़ादी का जश्न "एक चिट्ठी देश के नाम लिखकर" मनाइए- बस इस अगस्त तक. आपकी चिट्ठी २९ अगस्त ०९ तक हमें आपकी तस्वीर व संक्षिप्त परिचय के साथ भेज दीजिये. [उल्टा तीर] please visit: ultateer.blogspot.com/
बहुत अच्छी गज़ल है।बधाई।
सुंदर गजल है
gajab bhai.narayan narayan
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