''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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ग़ज़ल

>> Sunday, August 23, 2009

शख्स वो सचमुच बहुत धनवान है
पास जिसके सत्य है, ईमान है
प्रेम से तो पेश आना सीख ले
चार दिन का तू अरे मेहमान है
एक खामोशी यहाँ पसरी हुई
ये हवेली है की इक शमशान है
मुफलिसी अभिशाप है तेरे लिए
मुझको तो लगता कोई वरदान है
वो महकता है सुबह से शाम तक
जिसके भीतर नेकदिल इनसान है
बाँट दे दिल खोल कर दौलत अरे
पास तेरे गर कोई जो ज्ञान है
हो रहमदिल आदमी इतना बहुत
फ़िर तो क्या अल्लाह, क्या भगवान है

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मेरी जुबां पर सच भर आया
कुछ हाथो में पत्थर आया
मैंने फूल बढाया हंस कर
मगर उधर से खंजर आया
उनको मिली विफलाताये तो
दोष हमारे ही सर आया
मुझे इबादत की जब सूझी
बुझाता घर रोशन कर आया
थकन मिट गयी मेरी पंकज
जब मेरा अपना घर आया
गिरीश पंकज

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