>> Monday, August 24, 2009
इस बेरहम समय में नेट के माध्यम से भले लोग मिलते जा रहे है लेकिन बुरे लोगो का क्या किया जाए। जलनखोरी, टांग खिचाई, पर निंदा, सिर्फ़ कमिया देखना, प्रतिभा का सम्मान न करना, ऐसी फितरत वाले कम नही है, लेकिन अच्छे लोग भी है. अच्छे लोगो के लिए मेरी एक और ग़ज़ल। इस रचना पर भी सुधीजन अपने विचार भेजेंगे, तो खुशी होगी। -
ग़ज़ल
सच के हिस्से तनहाई है
वक़्त बड़ा ये हरजाई है
मित्र समझ कर बात कही थी
अब दोनों में रुसवाई है
दौलत ने दो फाड़ कर दिया
कौन यहाँ किसका भाई है
किसने सच को सहन किया है
झूठो की तो बन आई है
पंकज रहना सुखी अकेले
बस्ती में हाथापाई है।
गिरीश पंकज
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