''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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>> Monday, August 24, 2009

अपने समय के सच को आप लम्बा लेख लिख कर भी रूपायित कर सकते है, कुछ पंक्तियाँ लिख भी काम हो सकता है। मैंने एक ग़ज़ल के मध्यम से कुछ कहने की कोशिश की है । लोकतंत्र को हम देख रहे है, उसकी असलियत भी सामने है. बताइयेगा, कैसा प्रयास है?
ग़ज़ल

लोकतंत्र शर्मिंदा है
राजा अब तक जिंदा है
हमने अपनी बात कही
वे समझे यह निंदा है
मजहब के ख़ूनी दंगे में
घायल श्वेत परिंदा है
साधू का मेकप है लेकिन
भीतर एक दरिंदा है
गिरीश पंकज

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