''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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>> Monday, August 24, 2009

कुछ दिन के लिए में प्रवास पर रहूँगा। वहा मौका मिला तो कुछ चीजे पोस्ट करूंगा, फिलहाल पेश है दो और ग़ज़ले। चाहने वालो का स्नेह मिलेगा ही, यह भरोसा है। तो अर्ज किया है कि-
ग़ज़ल
साथ आओगे तो मुझको हौसला मिल जाएगा
साँस लेने का समझ लो सिलसिला बन जाएगा
यूं अकेला भी चलूँ तो कौन रोकेगा मुझे
तुम रहोगे साथ तो ये रास्ता कट जाएगा
थे बहुत छोटे तो सारे भाई-बन्धु एक थे
क्या पता था के बड़े होंगे तो घर बंट जाएगा
आपके होने का दम जो लोग भरते है यहाँ
आने दो कोई मुसीबत सब पता चल जाएगा
प्यार दे कर जीत लो इस ज़िंदगी की जंग को
हो कोई दुश्मन तुम्हारे रंग में ढल जाएगा



मै जो देखू तुम्हे मुसकराया करो
यूं अंधेरे मे दीपक जलाया करो
रूठना तो अदा है तुम्हारी प्रिये
पर मनाऊँ तो फ़िर मान जाया करो
लौटने की कभी बात करना नही
जिस घड़ी तुम मेरे पास आया करो
हर कली तेरे आने से खिल जाएगी
फूल तुम इस अदा से खिलाया करो
गीत जीवन का हरदम ये सुर में रहे
तुम इसे संग मेरे ही गाया करो
हाथ केवल उठे तो दुआ के लिए
तुम किसी पर इसे उठाया करो

दिल किसी का कभी मत दुखाया करो
पुन्य को पुन्य कर के कमाया करो
दिल में रहता प्रभू तुम इसे जान लो
अपने दिल में सभी को बिठाया करो

-गिरीश पंकज

4 टिप्पणियाँ:

36solutions August 28, 2009 at 8:53 PM  

स्‍वागत है बड़े भाई. आपको इस ब्‍लाग जगत में देखकर अच्‍छा लगा. मेरे ब्‍लाग के फालोवर लिस्‍ट में आपका चित्र देखते ही मुझे आपकी रचना 'डेड बाड़ी' याद आ गई थी.
आपका सृजनशील मानस इस यात्रा में भी पूर्ण सक्रिय होगा.

अजित वडनेरकर August 31, 2009 at 3:35 PM  

विलम्ब से यहां आने के लिए क्षमा करेंगे गिरीशजी। बहुत अधिक व्यस्तता के चलते उदयप्रकाश जी वाली पोस्ट पर आपकी पहली टिप्पणी को अव्वल तो देर से देख पाया। बाद में फिर उलझ गया। मगर आपको मैने टैग कर रखा था सो आज जवाब दे रहा हूं।
आप शब्दों का सफर पर आए, बहुत अच्छा लगा। आपके नाम से बहुत वर्षों से वाकिफ हूं। आपके बालगीतों का ब्लाग भी देखा। बहुत सुंदर बालगीत वहां संजोए हैं। उसे किसी ब्लागएग्रीगेटर पर रजिस्टर कराएं ताकि उनका आनंद पूरा हिन्दीजगत ले सके।

यहां पेश दोनों गीत बेहद सुंदर हैं।
साभार, अजित

vijay kumar sappatti September 1, 2009 at 1:29 AM  

Bahut hi sundar aur bhaavpoorn abhivyakti .. man ko chooti hui gazal. Meri badhai sweekar kijiyenga.

Dhanywad.

Vijay
Please read my new poem “ jheel “ on my blog : http://poemsofvijay.blogspot.com/

Yogesh Verma Swapn September 2, 2009 at 6:32 PM  

behatareen girish ji,

donon gazlen lajawaab,badhaai sweekaren.

सुनिए गिरीश पंकज को

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