>> Monday, August 24, 2009
चिट्ठी लिखता देश के नाम...
आंसू बहते सुबहोशाम।
चिट्ठी लिखता देश के नाम...
देश हुआ आजाद मगर अब
अपना सच्चा तंत्र कहाँ है?
गाँधी जी ने हमें दिया था
वो इक देशी मन्त्र कहाँ है?
लोकतंत्र को देख दुखी है ,
अपने अल्ला, अपने राम....
चिट्ठी लिखता देश के नाम...
अपनी भाषा नही बन सकी
हिन्दी, यह हैरानी है ।
महरी जैसी रहती देखो
अंगरेजी महारानी है।
देश नही भाता दिल्ली को,
लन्दन अब तक इनका धाम.
चिट्ठी लिखता देश के नाम...
नेता सब राजा-महराजा,
अफसर अत्याचारी हैं,
दोनों का गठजोड़ अनोखा,
जनता बस दरबारी है।
लोक बड़ा असहाय खड़ा है ,
जीना उसका हुआ हराम।
चिट्ठी लिखता देश के नाम...
उठो-उठो अब क्रांतिवीर सब
भारत नया बनाना है,
वीर शहीदों के सपनों को,
पूरा कर दिखलाना है।
जनता राजा बने उसी दिन ,
होगा लोकतंत्र सुखधाम ।
चिट्ठी लिखता देश के नाम...
आंसू बहते सुबहोशाम।
- गिरीश पंकज
1 टिप्पणियाँ:
bahut umda.
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