''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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>> Friday, September 4, 2009

ग़ज़ल

आदमी हो आदमी की शान रखना तुम
हो मुसीबत लाख पर यह ध्यान रखना तुम
मन को भीतर से बहुत बलवान रखना तुम
बहुत सम्भव है बना दे भीड़ तुमको देवता
किंतु मन में इक अदद इन्सान रखना तुम

हर जगह बिछते रहो ये आचरण कैसा
आदमी हो आदमी की शान
रखना तुम
ज़िन्दगी में कब कहाँ ये साँस थम जाए
अधर पे बस हर घड़ी मुस्कान रखना तुम
है बुजुर्गो से जुदा माना तुम्हारी सोच
पर कभी उनके कहे का मान रखना तुम

  • गिरीश पंकज

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