>> Friday, September 4, 2009
ग़ज़ल
आदमी हो आदमी की शान रखना तुम
हो मुसीबत लाख पर यह ध्यान रखना तुम
मन को भीतर से बहुत बलवान रखना तुम
बहुत सम्भव है बना दे भीड़ तुमको देवता
किंतु मन में इक अदद इन्सान रखना तुम
हर जगह बिछते रहो ये आचरण कैसा
आदमी हो आदमी की शान रखना तुम
ज़िन्दगी में कब कहाँ ये साँस थम जाए
अधर पे बस हर घड़ी मुस्कान रखना तुम
है बुजुर्गो से जुदा माना तुम्हारी सोच
पर कभी उनके कहे का मान रखना तुम
- गिरीश पंकज
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