''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
&COPY गिरीश पंकज संपादक सदभावना दर्पण. Powered by Blogger.

>> Friday, September 11, 2009


बहुत पहले एक फिल्मी गीत सुना था- माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी यह बड़ी रचना है। इसे हमेशा गुनगुनाता हूँ मै। मंत्रमुग्ध हो जाता हूँ. माँ पर हजारो रचनाये लिखी गयी है। भविष्य में भी लिखी जाएँगी। माँ को याद करना अपना कर्तव्य है। मैंने भी एक प्रयास किया है। यह कोई बड़ी रचना नही है, बस मन किया की पर कुछ लिखा जाए। किसी पाठक को पसंद गयी तो ठीक वरना कोई बात नही।

अम्मा
दया की एक मूरत और सच्चा प्यार है अम्मा
है इसकी गोद में ज़न्नत लगे अवतार है अम्मा
मुझे काँटा चुभा तो दर्द से वो रो पड़ी अकसर
मेरे हर दर्द का पहला सही उपचार है अम्मा
खिला कर वो ज़माने को हमेशा तृप्त होती है
रहे भूखी बोले कुछ बड़ी खुद्दार है अम्मा
वो है ऊंची बड़ी उसको कोई छू सका अब तक
धरा पर ईश का इन्सान को उपहार है अम्मा
नही चाहत मुझे कुछ भी अगर हो सामने सूरत
मेरी है ईद, दीवाली, हर इक त्यौहार है अम्मा
मै दुनिया घूम कर आया अधूरा-सा लगा सबकुछ
जो देखा गौर से पाया सकल संसार है अम्मा
पिता है नाव सुंदर-सी मगर ये मानता हूँ मै
लगाये पार जो इसको वही पतवार है अम्मा
गिरीश पंकज



2 टिप्पणियाँ:

Yogesh Verma Swapn September 11, 2009 at 5:01 PM  

खिला कर वो ज़माने को हमेशा तृप्त होती है
रहे भूखी न बोले कुछ बड़ी खुद्दार है अम्मा
पिता है नाव सुंदर-सी मगर ये मानता हूँ मै
लगाये पार जो इसको वही पतवार है अम्मा
matra-naman. lajawaab rachna. wah.

संजय तिवारी September 11, 2009 at 6:33 PM  

आपकी लेखन शैली का कायल हूँ. बधाई.

सुनिए गिरीश पंकज को

  © Free Blogger Templates Skyblue by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP