>> Friday, September 11, 2009
बहुत पहले एक फिल्मी गीत सुना था-ए माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी। यह बड़ी रचना है। इसे हमेशा गुनगुनाता हूँ मै। मंत्रमुग्ध हो जाता हूँ. माँ पर हजारो रचनाये लिखी गयी है। भविष्य में भी लिखी जाएँगी। माँ को याद करना अपना कर्तव्य है। मैंने भी एक प्रयास किया है। यह कोई बड़ी रचना नही है, बस मन किया की पर कुछ लिखा जाए। किसी पाठक को पसंद आ गयी तो ठीक वरना कोई बात नही।
अम्मा
दया की एक मूरत और सच्चा प्यार है अम्मा
है इसकी गोद में ज़न्नत लगे अवतार है अम्मा
मुझे काँटा चुभा तो दर्द से वो रो पड़ी अकसर
मेरे हर दर्द का पहला सही उपचार है अम्मा
खिला कर वो ज़माने को हमेशा तृप्त होती है
रहे भूखी न बोले कुछ बड़ी खुद्दार है अम्मा
वो है ऊंची बड़ी उसको न कोई छू सका अब तक
धरा पर ईश का इन्सान को उपहार है अम्मा
नही चाहत मुझे कुछ भी अगर हो सामने सूरत
मेरी है ईद, दीवाली, हर इक त्यौहार है अम्मा
मै दुनिया घूम कर आया अधूरा-सा लगा सबकुछ
जो देखा गौर से पाया सकल संसार है अम्मा
पिता है नाव सुंदर-सी मगर ये मानता हूँ मै
लगाये पार जो इसको वही पतवार है अम्मा
है इसकी गोद में ज़न्नत लगे अवतार है अम्मा
मुझे काँटा चुभा तो दर्द से वो रो पड़ी अकसर
मेरे हर दर्द का पहला सही उपचार है अम्मा
खिला कर वो ज़माने को हमेशा तृप्त होती है
रहे भूखी न बोले कुछ बड़ी खुद्दार है अम्मा
वो है ऊंची बड़ी उसको न कोई छू सका अब तक
धरा पर ईश का इन्सान को उपहार है अम्मा
नही चाहत मुझे कुछ भी अगर हो सामने सूरत
मेरी है ईद, दीवाली, हर इक त्यौहार है अम्मा
मै दुनिया घूम कर आया अधूरा-सा लगा सबकुछ
जो देखा गौर से पाया सकल संसार है अम्मा
पिता है नाव सुंदर-सी मगर ये मानता हूँ मै
लगाये पार जो इसको वही पतवार है अम्मा
गिरीश पंकज
2 टिप्पणियाँ:
खिला कर वो ज़माने को हमेशा तृप्त होती है
रहे भूखी न बोले कुछ बड़ी खुद्दार है अम्मा
पिता है नाव सुंदर-सी मगर ये मानता हूँ मै
लगाये पार जो इसको वही पतवार है अम्मा
matra-naman. lajawaab rachna. wah.
आपकी लेखन शैली का कायल हूँ. बधाई.
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