>> Sunday, September 13, 2009
इस बार एक गीत.....
चल-चल ......
पत्थर दिल बस्ती में केवल,नेह-सुमन बिखराता चल ।
सब हो जायेंगे तेरे,पत्थर खा कर मुस्काता चल।
जब तक मानव हैं धरती पर, बुरे यहाँ तो अच्छे भी,
केवल झूठे लोग नही है, कुछ मिलते है सच्चे भी।
झूठों का हो बहुमत लेकिन सच की ध्वजा उठता चल ॥
सब हो जायेंगे तेरे,पत्थर खा कर मुस्काता चल।।
सब करते कर्तव्य यहाँ पर, सबको ना फल मिलता है,
बस धीरज हो मन में तो फिर,प्रश्नों का हल मिलता है ।
मेहनत ही अपनी पूजा है, अपना धर्म निभाता चल ॥
सब हो जायेंगे तेरे,पत्थर खा कर मुस्काता चल।।
पल-पल में संकट आ कर के, हमको बहुत छकाते है,
टूट नही पाते है वो सच्चे इन्सान कहाते है ।
काँटों वाले पर पथ चलने की हिम्मत दिखलाता चल।।
पत्थर दिल बस्ती में केवल नेह-सुमन बिखराता चल,
सब हो जायेंगे तेरे पत्थर खा कर मुस्काता चल।
1 टिप्पणियाँ:
सुन्दर शब्दों में भरी है आशा ..इस आशावादी दृष्टिकोण को बनाये रखें बहुत शुभकामनायें ..!!
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