>> Thursday, September 24, 2009
इस बार वृद्धो को समर्पित गीत ....
जो वृद्धजनों की सेवा में, तन-मन- धन अर्पण करता है,
वह करे न पूजा-पाठ मगर, प्रभु के ही दर्शन करता है।
जिसने इस दुनिया में आ कर, गर वृद्धों का सम्मान किया,
उसने अपने लघु जीवन का, प्रतिपल जैसे उत्थान किया।
उसका वंदन जो बूढों का, बढ़ कर अभिनन्दन करता है।।
क्या पद-पैसा रह जाता है, यह तो आता है, जाता है,
जो सेवा करता है सबकी, इक दिन वो परम पद पाता है।
वह मानव नही महामानव, जो वन को उपवन करता है।।
जो वृद्धजनों की सेवा में, तन-तन-धन अर्पण करता है.....
यह तन है सुंदर, स्वस्थ मगर, इक दिन इसको ढल जाना है,
जैसे बगिया के सुमनों को जब शाम हुई ढल मुरझाना है।
वह धन्य है जो इन फूलों का, बढ़ कर संरक्षण करता है।।
जो वृद्धजनों की सेवा में, तन-तन-धन अर्पण करता है....
ये वृद्ध नही इक बरगद हैं, जो शीतल छाँव लुटाते हैं ,
ख़ुद झुलस गए अकसर लेकिन, जलने से हमें बचाते हैं।
यह काम हमेशा बस केवल, धरती का भगवन करता है॥
जो वृद्धजनों की सेवा में,तन-तन-मन का अर्पण करता है
वह करे न पूजा-पाठ मगर, प्रभु के ही दर्शन करता है।
(चित्र बिल्होवेल डॉट कॉम से साभार)
3 टिप्पणियाँ:
प्रेरक रचना . ....
गिरीश भाई यह क्या संयोग है कि मैने भी आज ब्लॉग "शरद कोकास " पर वृद्ध स्त्री पर एक कविता लगाई है ।
कमाल है... बेहतरीन प्रेरक रचना
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