''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
&COPY गिरीश पंकज संपादक सदभावना दर्पण. Powered by Blogger.

एक अपील...अंतर्जाल में घुसे अपराधियों से...

>> Thursday, September 24, 2009



अंतर्जाल उर्फ़ नेट जैसे महान माध्यम का, कुछ अपराधी प्रवृत्ति वाले लोग, गलत इस्तेमाल कर रहे है, यह दुःख की बात है. संजीव तिवारी के नाम का सहारा लेकर किसी ने चर्चित -ब्लागर जयप्रकाश मानस (वेब पत्रिका-सृजनगाथा वाले ) पर कीचड उछलने के बारे में मुझे पता चला है यह कदम निंदनीय है। मै देख रहा हूँ, कि संजीव तिवारी (ब्लॉग का नाम- आरम्भ) जैसे लोग समर्पण, मेहनत और ईमानदारी के साथ लगे हुए है, उनका नाम ख़राब करने की कोशिश निंदनीय है। श्री संजीव से मै ऐसी उम्मीद ही नहीं करता. ऐसा करने वाले लोग बेनकाब होंगे ही, लेकिन ऐसा करने वाले लोग कितने कायर है, कमजोर है, यह तो समझा ही जा सकता है. छिप कर तो नपुंसक या हिजडे ही वार करते है. (कभी-कभी शातिर लोग सामने कर भी वार करते है, जब उनका कोइ स्वार्थ नहीं सध पाता... खैर) फ़िलहाल मै संजीव के साथ हूँ, संजीव का विचलन भी समझ सकता हूँ. छत्तीसगढ़ में कुछ लोग ऐसा खेल खेलते रहते है. ये अँधेरे के खलनायक है. अँधेरे में रह कर ही अभिनय करते रहते है. और अपने अभिनय पर मगन रहते है. कोइ मेरे नाम से किसी को बदनाम करने की कोशिश करे तो यह मेरे लिए चिंता की बात हो ही जायेगी. कितनो को कोइ समझाए, कि भाई, ये मै नहीं हूँ.वैसे मानस समझदार है. वह नेट की दुनिया से, उसकी तकनीक से वाकिफ है। उसे समझ ही जाना चाहिए की उस पर कीचड उछालने वाला महा-पुरुष(...?) कोइ और ही है. पिछले दिनों किसी महानुभाव ने मेरी ही तस्वीर विकृत कर दी.... हद है. अरे पार्टनर, मै जो हूँ, वो तो हूँ ही, लेकिन मेरी तस्वीर विकृत करने वाले ने अपनी आत्मा को पहले विकृत किया, उसे वह बेचारा देख ही नहीं पाया. प्रभु उसे माफ़ करे क्योंकि बेचारा समझ नहीं पाया कि उसने क्या किया. किसी कि तस्वीर बिगडो मत, बना सको तो कृपा होगी. बना भी नहीं सकते तो खामोश रहो. कुढ़ लो, बडबडा लो, लेकिन गलत काम तो मत करो. किसी के सृजन को देख कर विचलित मत हो कल्लुओं या लल्लुओं.... अपनी लकीर बड़ी करो, लकीर... वर्ना तुम तो वही के वही रह जाओगे और जिसको बदनाम करने की कोशिश कर रहे हो या जिसकी तस्वीर बिगाड़ रहे हो , वह हमेशा की तरह कहाँ से कहाँ पहुच जायेगा. और देखते रह जाओगे। मै अंतरजाल से जुड़े विध्वंसक किस्म की (दुरा)आत्माओं लोगो से अपील कर रहा हूँ कि वे इस माध्यम को जी का जंजाल बनायें और अपने भीतर का अच्छा सृजन दुनिया तक ले जाये, बुरे मन को भीतर ही कुलबुलाने दे. बाहर निकाले. अपने वैचारिक-शौचालय को घर के भीतर ही रहने दे, सड़को पर फैलाये. वर्ना लोगों का चलना मुश्किल हो जायेगा. प्रिय संजीव भाई, तुम अपना काम करते रहो. बहुत बेहतर काम कर रहे हो, छत्तीसगढ़ का नाम रोशन कर रहे हो. बिलकुल चिता मत करना, अगर किसी ने तुम्हारा नाम लेकर दूसरे पर कीचड़ उछालने की कोशिश की है. वह कीचड बहुत जल्दी उसके चेहरे पर ही पुत जायेगा, ऐसा मेरा विश्वास है. बहरहाल, विध्वंसक जन सृजन की सही परिभाषा समझ सकें(?) इसलिए अपना एक गीत पेश कर रहा हूँ. देखें-

दीपक -सा जलना है मुश्किल...

अभी भी थोड़ा जहर भरा है, अभी सृजन करना है मुश्किल
बीज अगर सड़ जाए तो फ़िर फूलों का खिलना है मुश्किल।।

रचना के पहले अंतस को, बच्चों-सा निर्मल कर लेना,
मन के अतल कूप में पहले, तुम उजास अमृत भर लेना।
अगर कदम सही पड़े तो, आगे को बढ़ना है मुश्किल।।

गीत, ग़ज़ल, कविता है मिथ्या, गर सर्जक का मन दूषित है,
वह कैसे दिखलायेगा पथ, जिसका ख़ुद जीवन दूषित है।
दुर्जन के घर सुजन-ध्रुवों का, दो पल भी रहना है मुश्किल।।

सुंदर-मानुस तन के भीतर, जब भी पशुता बढ़ जाती है,
अन्धकार में डूबी दुनिया, चारों तरफ़ नज़र आती है।
मिट्टी अगर सही हो तो, मूरत को गढ़ना है मुश्किल।।

सर्जक बनने से पहले मैं, सर्जन का मतलब तो जानूं,
करूं विसर्जित स्व को अपने, जन-जन को मैं अपना मानूं।
बिना भावना की बाती के, दीपक-सा जलना है मुश्किल ।।

अभी भी थोड़ा जहर भरा है, अभी सृजन करना है मुश्किल
बीज अगर सड़ जाए तो फ़िर फूलों का खिलना है मुश्किल।।

गिरीश पंकज
(ग्रीन ईकोटूल्स से साभार )

4 टिप्पणियाँ:

Anonymous September 25, 2009 at 7:06 AM  

girish bhai bahut hi satik likha hai aapne.. aap jaise lekhk aur kavi ko hamre blog jagat ko jarurat hai. philhal aapko bata dun ki नए संदेशो को दिखने वाला खाश विजेट अब तैयार हो चुका है

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बहुत ही सानदार है यह विजेट जिसे देखते ही आप कह उठेंगे वह बहुत ही सुंदर है चुकी जब आपके ब्लॉग पर पोस्ट की संख्या जायदा हो जाए तो यह जरुरी हो जाता है। यह विजेट आपको कई सरे वेबसाइट और ब्लॉग से मिल जाएगा बस आपको गूगल बाबा के साथ थोडी सी मसकत करनी पड़ेगी। इ-टिप्स ब्लॉग इस सानदार विजेट को आप तक पंहुचा रहा है

Anonymous September 25, 2009 at 7:11 AM  

Etips Blog Said...
आप अब देते है भी किसी ब्लॉग पर अपनी कमेंट्स देंगे तो आप अपने फोटो को भी जोड़ सकेगें , ब्लॉगर के दसवे जन्मदिवस पर मिलने वाले इस तोहफे से ब्लॉगर बहुत खुश है। इस मसले पर जब मैंने एक ब्लॉगर से इमेल के जरिये ये पूछा की यह सुविधा कैसी है
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36solutions September 25, 2009 at 9:15 AM  

बहुत बहुत धन्‍यवाद भईया इस संवेदनशील मसले पर आपने लिखा एवं हम सब को वैचारिक रूप से सबल किया.

कविता दिल को छू गई. आभार.

Randhir Singh Suman October 8, 2009 at 8:51 PM  

बीज अगर सड़ जाए तो फ़िर फूलों का खिलना है मुश्किल।।nice

सुनिए गिरीश पंकज को

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