>> Sunday, September 20, 2009
नई ग़ज़ल..
गीता, बाइबिल, गुरुग्रंथ, कुरान हमारी बस्ती में
फ़िर कैसे पैदा हो गए शैतान हमारी बस्ती मे
खून से लथ-पथ इनसानों की लाशे देख रहा है वो
क़दम-क़दम पर शर्मिंदा भगवान हमारी बस्ती मे
मेरा मज़हब सबसे अच्छा, धर्म मेरा सबसे ऊंचा
इस पागलपन में जाती है जान हमारी बस्ती मे
प्यार-मोहब्बत की सब बातें लगती है अफसानो-सी
नफ़रत बाँट रही है अँधा-ज्ञान हमारी बस्ती मे
बम-बंदूकों, तलवारों से धर्म कहाँ -कब फैला है
प्रेम की बोली से जीतो इनसान हमारी बस्ती में
गिरीश पंकज
2 टिप्पणियाँ:
बहुत सुंदर रचना .. हम ईद और दुर्गा पूजा एक साथ मना रहें .. क्या अंतर हो सकता है अल्लाह और भगवान में !!
बम-बंदूकों, तलवारों से धर्म कहाँ -कब फैला है
प्रेम की बोली से जीतो इनसान हमारी बस्ती में
सांप्रदायिक सौहाद्र की जरुरत को दर्शाती सुन्दर कविता ..!!
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